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________________ ५३६ उवासमदसाओ समयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयं प्रज्भतिथए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था -- एवं खलु ग्रहं इमेणं एयारूवेणं श्रोरालेणं विउलेणं पत्ते पहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लक्खे निम्मंसे श्रचिम्मावण किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए । तं प्रत्थि ता मे उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार- परक्कमे सद्धा-धि-संवेगे, तं जावता मे प्रत्थि उट्टा कम्मे वले वीरिए पुरिसक्कार परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, जाव य मे धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरइ, तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव' उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिण्यरे तेयसा जलते प्रपच्छिममारणंतियसंलेहणा भूसणा-भूसियस्स भत्तपाण- पडियाइक्खियस्स, कालं प्रणवखमाणस्स विहरित्तए - एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए उट्टियम्मि सूरे सहस्सररिसम्म दिपयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतियसंलेहणा - भूसणा-भूसिए भत्तपाण -पडियाइविखए कालं प्रणवखमाणे विहरइ ॥ लेतिया पियस्स समाहिमरण-पदं २५. तए णं से लेतियापिता समणोवासए बहूहि सील व्वय-गुण- वेरमण-पच्चक्खाणपोसहोववासेहि अप्पाणं भावेत्ता, वीसं वासाई समणोवासगपरियायं पाउणित्ता, एक्कारस य उवासगपडिमा सम्मं कारणं फासित्ता, मासियाए संलेहणाए प्रत्ताणं भूसित्ता, सट्टि भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता, आलोइय-पडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा • सोहम्मे कप्पे अरुणकीले विमाणे देवत्ताए उबवण्णे । तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओ माई ठिई पण्णत्ता । लेतियापियस्स वि देवस्स चत्तारि पलिश्रवमाई ठिई पण्णत्ता ॥ २६. से गं भंते ! लेतियापिता ताम्रो देवलोगाश्रो ग्राउक्खएणं भवक्खएणं ठिक्खणं श्रणंतरं वयं चइत्ता कहि गमिहिइ ? कहि उववज्जिहिइ ? गोमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहि सव्वदुक्खाणमंत काहि ॥ निeda-पदं २७. एवं खलु जंबू ! समणे णं भगवया महावीरेण उवासगदसाणं दसमस्स अभयणस्स अयमट्ठे पण्णत्ते ॥ १. उवा० १।५७ । २. अव्ययननिगमनानन्तरमादर्शेषु पाठान्तररूपेण स्वीकृतं संग्रहवाक्यमुपलभ्यते । वृत्त्यनुसारेण नैतत् संभाव्यते-- दसह वि पष्णरसमे Jain Education International संवच्छरे वट्टमाणे णं चित्ता | दसह वि वीसं वासाई समणोवासयपरिया (क) ख, ग, घ ) । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003563
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Uvasagdasao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages242
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_upasakdasha
File Size4 MB
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