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चउत्थं अज्झयणं (सुरादेवे) सुरादेवस्स उवासगपडिमा-पदं ४७. तए णं से सुरादेवे समणोवासए पढम उवासगपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ ।। ४८. तए णं से सुरादेवे समणोवासए पढम उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं
अहामग्गं अहातच्चं सम्म कारणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ पाराहेइ।। ४६. तए णं से सुरादेवे समणोवासए दोच्चं उवासंगपडिम, एवं तच्चं, चउत्थं,
पंचम, छटुं, सत्तमं, अट्ठमं, नवमं, दसमं, एक्कारसं उवासगपडिमं अहासुतं अहाकायं ग्रहामग्गं अहातच्चं सम्मं कारणं फासेइ पालेइ सोहेइ तोरेइ कित्तेइ
पाराहेइ ॥ ५०. तए णं से सुरादेवे समणोवासए तेणं अोरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं
तबोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे
धमशिसंतए जाए। सुरादेवस्स अणसण-पदं ५१. तए णं तस्स सुरादेवस्स समणोवासगस्स अण्णदा कदाइ पुव रत्तावरत्तकाल
समयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झस्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकणे समुप्पज्जित्या--एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं अोरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मसे अद्विचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए । तं अत्थि ता मे उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार परक्कमे मुद्धा-धिइ-संवेगे, तं जावता मे अत्थि उट्टाणे कम्मे बले वीगि परिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेग, जाव य मे धम्मारिए धम्मावएमए समण भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरइ, तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणोए जाव' उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतियसलेहणा-रुसणा-झसियस्स भत्तपाण-पडियाइक्खियस्स, काल अणवकंखमाणस्स विहरित्तए --एव संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाध रयणीए जाव उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतियसले हणा-झसणा-भूसिए भत्तपाण-पडियाइक्खिए कालं
अणवखमाणे विहरइ ।। सुरादेवस्स समाहिमरण-पदं ५२. तए णं से सुरादेवे समणोवासए बहूहिं सील-वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण
पोसहोववासेहि अप्पाणं भावेत्ता, वीसं वासाई समणोवासगपरियागं पाउणित्ता, एक्का रस य उवासगपडिमानो सम्म कारणं फासित्ता, मासियाए संलेहणाए
१. उवा० ११५७ ।
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