Book Title: Yog Granth Vyakhya Sangraha
Author(s): Kirtiyashsuri
Publisher: Suri Ramchandra Shatabdi Samiti
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________________ 6] [योगग्रन्थव्याख्यासंग्रहः नाम व्याख्या गाथा 151 10/8 अध्यात्मध्याने = परमसंवररूपे / उ.र. अध्यात्ममयी क्रिया = अपुनर्बन्धकाद् यावद् गुणस्थानं चतुर्दशम् / / __क्रमशुद्धिमती तावत् क्रियाध्यात्ममयी मता // 4 // अध्या. 2/4 अध्यात्मवैरिणी क्रिया = आहारोपधिपूजद्धिगौरवप्रतिबन्धतः / ___ भवाभिनन्दी यां कुर्यात् क्रियां साध्यात्मवैरिणी // 5 // अध्या. 2/5 अनधीनसुखम् = अपरायत्तं, निरन्तरस्वपरिणतिधारापतितत्वादित्थमपीतरकारण स्पृहोत्सुक्याभावादितरसुखातिशायित्वमव्याहतम् / उ.र. 69 अनध्यवसायः = विधीयमानानुष्ठानोचिताध्यवसायाभावः / यो.बि. .... = सुप्तमत्तपुरुषवत् क्वचिदप्यर्थे बोधस्याप्रवृत्तिः / उ.प. '198 अननुष्ठानम् = अनुष्ठानाभासम् / यो.बि. 155 = प्रणिधानाद्यभावेन कानध्यवसायिनः / / संमूच्छिमप्रवृत्ताभमननुष्ठानमुच्यते // 8 // अध्या. = यत्र प्रमादयोगात् संयमयोगेषु विविधभेदेषु / नो धार्मिकप्रवृत्तिर्बुवते खलु तदननुष्ठानम् // 184 // मार्ग. 184 = संमोहात् सन्निपातोपहतस्येव सर्वतोऽनध्यवसायादननुष्ठानमुच्यते / द्वा. . 13/13 अनन्तरफलम् = उपप्लवहासः, * भावैश्वर्यवृद्धिः, 447 * जनप्रियत्वम् / ध. 448 अनन्तानुबन्धी = पारंपर्येणानन्तं भवमनुबद्धं शीलं यस्य इति उदयस्थः सम्यक्त्वविघाती / श्रा.. अनवस्थाप्यप्रायश्चित्तम् = साहम्मिगाइतेणाइभावओ संकिलेसभेएण / तक्खणमेव वयाण वि होइ अजोगो उ अणवठ्ठा // 15 // . वि. 16/15 अनाकारोपयोगः = सामान्यग्रहणाभिमुखः / गु. 4/98 अनाकूलता = अत्वरा / षो. 13/6 अनादरः = अगौरवरूपः / यो.बि. .228 अनाप्तता = अक्षीणदोषत्वेनाहितत्वम् / अ. अनाबाधा = सर्वशरीरमानसव्यथाविकला / यो.बि. 367 अनाभिग्रहिकमिथ्यात्वम्= स्वपराभ्युपगतार्थयोरविशेषेण श्रद्धानम्, 446 6/5

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