Book Title: Yog Granth Vyakhya Sangraha
Author(s): Kirtiyashsuri
Publisher: Suri Ramchandra Shatabdi Samiti
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________________ 68] [योगग्रन्थव्याख्यासंग्रहः नाम व्याख्या गाथा परमाध्यात्मम् .532 परमानन्दः परमानन्दरूपम् परमानन्दसुखम् परम्परफलम् 450 1/2 परलोकः 436 = परमश्चासावात्मा च परमात्मा सकलकर्मरहितः देवाधिदेवरित्यर्थः / शा.वा. = निःशेषकलङ्करहितः * केवलज्ञानादिपरिणतस्तु परमात्मा, * ततः परं (क्षीणमोहादुपरि) तु परमात्मा / अ.म. = जा खलु सहावसिद्धा किरिआ अप्पाणमेव अहिगिच्च / भण्णइ परमञ्झप्पं सा दंसण-णाण-चरणड्डा / अ.म. = सुस्वास्थ्यं, तदन्यनिरपेक्षत्वादिति / ध. .. = प्रकृष्टाह्लादस्वभावम् / अ. 32/8 = मोक्षसुखम्, सर्वसांसारिकसुखातिशायिसुखम् / षो. 15/16 = सुगतिजन्मोत्तमस्थानपरम्परा निर्वाणाप्तिरिति, 449 * विशिष्टदेवस्थानमिति / ध. = जन्मान्तरं प्रधानं जन्म वा / पं.: = वर्तमानभावापेक्षया भवान्तररूपः / उ.प. , . = समाधिनिष्ठा तु परा तदासङ्गविवर्जिता / / सात्मीकृतप्रवृत्तिश्च तदुत्तीर्णाशयेति च // 178 // यो.दृ. = नैरपेक्ष्यादनौत्सुक्य-मनौत्सुक्याच्च सुस्थता / सुस्थता च परानन्द-स्तदपेक्षां क्षयेद् मुनिः // 19 // यो.सा. 5/19 = परप्रयोजननिष्पादनम् / यो.दृ. = विहितानुष्ठानपरस्य तत्त्वतो योगशुद्धिसचिवस्य / भिक्षाटनादि सर्वं परार्थकरणं यते यम् // 5 // षो. 13/5 = परोपकारबद्धचित्तः / यो.बि. = परावर्तनं तु पूर्वाधीतस्यैव सूत्रादेरविस्मरण निर्जरानिमित्तमभ्यासकरणम् / ध्या. = पुढवाइसु आरंभो, परिग्गहो धम्मसाहणं मुत्तुं / ___ मुच्छा य तत्थ बज्झो, इयरो मिच्छत्तमाईओ // 7 // पं.व. . 7 = मूर्छा परिग्रहः, 7/12 * चेतनावत्स्वचेतनेषु बाह्याभ्यन्तरेषु द्रव्येषु मूर्छा परिग्रहः / त.भा. 7/12 परादृष्टिः 178 परानन्दकारणम् परार्थकरणम् 272 परार्थरसिकः परावर्तनम् परिग्रहः

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