Book Title: Yog Granth Vyakhya Sangraha
Author(s): Kirtiyashsuri
Publisher: Suri Ramchandra Shatabdi Samiti

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Page 86
________________ व्याख्या पं.व. प्रवृत्तः] [77 | नाम गाथा = गीअत्था कयकरणा, कुलजा परिणामिआ य गंभीरा / चिरदिक्खिआ य वुड्डा, अज्जावि पवित्तिणी भणिआ // 1317 / / 1317 प्रवृत्तः = तृतीयवारं प्रकटीभूतः / गु. 2/32 प्रवृत्तचक्रयोगिनः = प्रवृत्तचक्रास्तु पुनर्यमद्वयसमाश्रयाः / शेषद्वयार्थिनोऽत्यन्तं शुश्रूषादिगुणान्विताः // 212 // यो.दृ. 212 = प्रवृत्तचक्रास्तु पुनर्यमद्वयसमाश्रयाः / / शेषद्वयार्थिनोऽत्यन्तं शुश्रूषादिगुणान्विताः // 23 // द्वा. 19/23 प्रवृत्तिः(प्रवृत्तियोगः) = अधिकृतधर्मस्थानोद्देशेन तदुपायविषय इतिकर्तव्यताशुद्धः शीघ्रक्रियासमाप्तीच्छादिलक्षणौत्सुक्यविरहितः प्रयत्नातिशयः / यो.वि. = चिकीर्षितकार्यव्यापारः / सा. = तत्रैव तु प्रवृत्तिः शुभसारोपायसङ्गतात्यन्तम् / अधिकृतयत्नातिशयादौत्सुक्यविवर्जिता चैव / षो. = प्रवृत्तिः प्रकृतस्थाने यत्नातिशयसंभवा / अन्याभिलाषरहिता चेत:परिणतिः स्थिरा // 12 // द्वा. 10/12 = सद्धर्मव्यापारेषु प्रवर्तनम् / पं. 4/29 = सर्वत्र शमसारं तु यमपालनमेव यत् / प्रवृत्तिरिह विज्ञेया द्वितीयो यम एव तत् // 216 // यो.दृ. 216 = सव्वत्थुवसमसारं तत्पालणमो पवत्ती उ // 5 // विं. = सव्वत्थुवसमसारं तप्पालणमो पवत्ती उ / यो.वि. प्रवृत्तियमः = स प्रवृत्तियमो यत्तत्पालनं शमसंयुतम् // 26 // द्वा. 19/26 प्रव्रज्या = पव्वयणं पव्वज्जा, पावाओ सुद्धचरणजोगेसु / इअ मुक्खं पइ वयणं, कारणकज्जोवयाराओ // 5 // पं.वं. = भवान्तरकृतानां पापानां प्रायश्चित्तम् / पं. प्रव्रज्याहः . = अथ प्रव्रज्याह: आर्यदेशोत्पन्न: 1, विशिष्टजाति कुलान्वितः 2, क्षीणप्रायकर्ममलः 3, तत एव विमलबुद्धिः 4, 'दुर्लभं मानुष्यम्, जन्म मरणनिमित्तम्, सम्पदश्चपलाः, विषया दुःखहेतवः, संयोगे वियोगः, प्रतिक्षणं मरणम्, दारुणो विपाकः' 3/8 17/5 5 16/48

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