Book Title: Yog Granth Vyakhya Sangraha
Author(s): Kirtiyashsuri
Publisher: Suri Ramchandra Shatabdi Samiti

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Page 43
________________ 34] [योगग्रन्थव्याख्यासंग्रहः नाम व्याख्या गाथा कृत्स्नकर्मक्षयः कृपणाः केवलज्ञानफलम् केवलज्ञानम् = निखिलमलप्रलयः / यो.बि. 136 = स्वभावतः एव सतां कृपास्थानम् / यो.बि. 123 = एयम्मि भवोग्गाहिकम्मखयओ उ होइ सिद्धत्तं / नीसेससुद्धधम्मासेवणफलमुत्तमं नेयं // 20 // वि. 18/20 = केवनाणमणंतं जीवस्सरूवं तयं निरावरणं / लोगालोगपगासगमेगविहं निच्चजोइ त्ति // 1 // वि. 18/1 केवलम्-मत्याद्यसहवृत्ति, परिपूर्णस्वेतरज्ञानविषयताव्यापकविषयताकं, समग्रंपदार्थत्वव्यापकविषयताकम्, असाधारणंसजातीयद्वितीयरहितम्, निरपेक्षम्आलोचकेन्द्रियावग्रहप्रणिधानाद्यपेक्षारहितम्, विशुद्धं-निःशेषावरणमलरहितम् / त.उ. 1/30 = ज्ञानान्तरासहचरितं सर्वविषयं वा / त.उ.. = शाश्वतमनन्तमनतिशयमनुपममनुत्तरं निरवशेषम् / संपूर्णमप्रतिहतं संप्राप्तः केवलं ज्ञानम् // 268 // प्रश. 268 = सकलद्रव्यपर्यायगोचरत्वात् परिपूर्णज्ञानमुपयोगविशेषः / यो.बि. 367 = विहितनिषिद्धाचरणत्यागरूपा / षो. 3/2 = स्वसमयपरसमयोदिताचाररूपा / ध.प. = चारित्रमोहनीयकर्मक्षयोपशमजनितमुक्तिसाधनानुष्ठानकरणपरायणः / / उ.र. = चारित्रमोहनीयकर्मक्षयोपशमाद् मुक्तिसाधनानुष्ठानकरणपरायणः / उ.प. 199 = चारित्रमोहनीयकर्मक्षयोपशमान्मुक्तिसाधनानुष्ठानकरणपरायणः / 3/6 = मूलगुणोत्तरगुणाराधनायां बद्धकक्षः / उ.प. 852 = मूलगुणोत्तरगुणाराधनायां बद्धकक्षः / उ.र. = तेषामेव प्रणामादिक्रियानियम इत्यलम् / क्रियावञ्चकयोगः स्यान्महापापक्षयोदयः // 220 // यो.दृ. 220 = तेषामेव प्रणामादिक्रियानियम इत्यलम् / क्रियावञ्चकयोग: स्यान्महापापक्षयोदयः // 30 // द्वा. क्रिया क्रियापरः 150 क्रियावञ्चक: 19/30

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