Book Title: Yog Granth Vyakhya Sangraha
Author(s): Kirtiyashsuri
Publisher: Suri Ramchandra Shatabdi Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 74
________________ निरूपसर्गः] [65 | नाम व्याख्या गाथा निरुपसर्गः निरोधः निर्ग्रन्थः 142 173 निर्जरा 9/7 1/4 निर्बन्धः निर्भयः निर्भासनम् निर्ममत्वम् निर्मलबोधः 129 33 1/35 4/55 निर्लज्जाः निर्वर्तनम् = जन्माधुपसर्गरहितो मोक्षः / प्र. = निरोधनं निरोधः प्रलयकरणम् / ध्या. = ग्रन्थः कर्माष्टविधं मिथ्यात्वाविरतिदुष्टयोगाश्च / तज्जयहेतोरशठं संयतते यः स निर्ग्रन्थः // 142 // प्रश. = बांधवधनेन्द्रियसुखत्यागात्त्यक्तभयविग्रह: साधुः / / ____ त्यक्तात्मा निर्ग्रन्थस्त्यक्ताहंकारममकारः // 173 // प्रश. = निर्जरा वेदना विपाक इत्यनर्थान्तरम् / त.भा. = विपाकात्तपसा वा कर्मपरिशाटो निर्जरा / त.उ. = आग्रह: / यो.बि. = इहलोकादिसप्तभयविप्रमुक्तः / ध्या. = वस्त्वंशविविक्तीकरणात्मिका दीप्तिः / त.उ. = रागस्यैकस्य प्रतिपक्षभूतम् / यो.शा. निर्मलबोधोप्येवं शुश्रूषाभावसम्भवो ज्ञेयः / शमगर्भशास्त्रयोगाच्छ्रुतचिन्ताभावना सारः // 6 // षो. = स्वतन्त्रतादोषात् / गु. = तथाध्यवसायेनाप्रच्युतिः / त.उ. .. = तात्त्विकसंसारनैर्गुण्यावधारणम् / उ.र. = नारयतिरियनरामरभवेसु निव्वेयओ वसइ दुक्खं / अकयपरलोयमग्गो ममत्तविसवेगरहिओ वि // 12 // वि. = निव्वेओ चागिच्छा तुरियं संसारचारयगिहस्स / स.स. = नैर्गुण्यपरिज्ञानेन भवचारकाद्विरक्तता / यो.वि. = भववैराग्यम् / सम्यग्दर्शनी हि दुःखदौर्गत्यगहने भवकारागारे कर्मदण्डपाशिकैस्तथा तथा कदर्थ्यमानः प्रतिकर्तुमक्षमो ममत्वरहितश्च दुःखेन निर्विण्णो भवति, विषयेष्वनभिषङ्गः / यो.शा. = विषयानभिष्वङ्गः / त.उ. = औत्सुक्यव्यावृत्तिः / श्रा. = विधिनिषेधान्यतर उपदेशः / सा. = सूत्रार्थभ्याम् अप्रकाशम् / त.उ. = उपचारपरिहाररूपः / यो.बि. 4/6 1/6 1/35 109 निर्वेदः 6/12 2/15 1/2 निवृत्तिः निवेदनम् 399 51 1/20 369 निशीथम् निश्चयः

Loading...

Page Navigation
1 ... 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150