Book Title: Yog Granth Vyakhya Sangraha
Author(s): Kirtiyashsuri
Publisher: Suri Ramchandra Shatabdi Samiti

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Page 47
________________ गाथा 196 38] [योगग्रन्थव्याख्यासंग्रहः | नाम व्याख्या = औदार्यदाक्षिण्यादिगुणबहुमानः / उ.र.. गुणरागी = विशुद्धाध्यवसायतया स्वतेषु परगतेषु वा गुणेषु-ज्ञानादिषु रागः-प्रमोदो यस्यास्त्यसौ गुणरागी, निर्भत्सर इत्यर्थः / पं. 3/6 = विशुद्धाध्यवसायतया स्वगतेषु परगतेषु वा गुणेषु ज्ञानादिषु रागः प्रमोदो यस्यास्त्यसौ, मत्सरविरोधिपरिणामवान् / उ.र. 10 = विशुद्धाध्यवसायतया स्वगतेषु वा परगतेषु वा गुणेषु ज्ञानादिषु रागः प्रमोदो यस्यास्त्यसौ गुणरागी निर्मत्सर इत्यर्थः / उ.प. 199 गुणस्थानकपरिणामवन्तः= नियमाद् मार्गमेवानुसारीणः / उ.प. .. 601 गुणस्थानम् = गुणानां ज्ञानादीनां स्थानं विशेषः / अ. 27/6 गुप्तिः = आत्मसंरक्षणं मुमुक्षोर्योगनिग्रहः, * प्रवृत्ति-निवृत्तिलक्षणा गुप्तिः / / = सम्यग्योगनिग्रहो गुप्तिः / त.भा. गुरुः (सुगुरु:) = मातृपितृकलाचार्यतज्जातिवृद्धधर्मोपदेष्टा / षो. = अनुयोगवृद्धः / उ.र. = गृणाति शास्त्रार्थमिति / श्रा. = गृणाति शास्त्रार्थम् इति / यो.श. = ज्ञानवृद्धः / द्वा. = दीक्षाचार्यः - ज्ञानादियुतः-सम्यग्ज्ञानदर्शनचारित्रयुक्तः / पं. 2/11 = धर्मज्ञो धर्मकर्ता च सदा धर्मपरायणः / सत्त्वेभ्यो धर्मशास्त्रार्थदेशको गुरुरुच्यते // अ. = पव्वज्जाजोग्गगुणेहिं संगओ विहिपवण्णपव्वज्जो। संविअगुरुकुलवासो सययं अक्खलिअसीलो अ॥१०॥ सम्मं अहीअसुत्तो, तत्तो विमलयरबोहजोगाओ / तत्तण्णू उवसंतो, पवयणवच्छल्लजुत्तो अ // 11 // सत्ताहिअरओ अ तहा, आएओ अणुवत्तगो अ गंभीरो / अविसाई परलोए, उवसमलद्धीइकलिओ अ // 12 // तह पवयणत्थवत्ता सगुरुअणुन्नायगुरुपओ चेव / एआरिसो गुरु खलु, भणिओ रागाइरहिएहिं // 13 // पं.व... 13 महाव्रतधरा धीरा भैक्षमात्रोपजीविनः / सामायिकस्था धर्मोपदेशका गुरवो मताः // 8 // यो.शा. 2 / 8 27/1

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