Book Title: Yog Granth Vyakhya Sangraha
Author(s): Kirtiyashsuri
Publisher: Suri Ramchandra Shatabdi Samiti
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________________ आम्नायः] [19 नाम .. व्याख्या गाथा आम्नायः 9/25 1/20 आयतिविराधकम् आयुः . आयोज्यकरणम् 19/12 10 आरम्भः 7/1 आरम्भवर्जनप्रतिमा 10/14 आराधकः 15 232 आराधकत्वम् आराधना = आम्नायो घोषविशुद्धं परिवर्तनं गुणनं रूपादानमित्यर्थः / त.भा. = आम्नायतेऽभ्यस्यते निर्जरार्थिभिरिति / त.उ. = परलोकपीडाकरम् / पञ्च. = एति याति वा इति / श्रा. = केवलाभोगेनाचिन्त्यवीर्यतया भवोपग्राहिकर्माणि तथा व्यवस्थाप्य तत्क्षपणव्यापारणं शैलेश्यवस्थाफलम् / द्वा. = शैलेश्यवस्थाफलम् / यो.दृ. = पृथिव्यादिजीवसंघट्टपरितापातिपातरूपः / अ. = एवं चिय आरम्भं वज्जइ सावज्जमट्ठमासं जा / तप्पडिमा पेसेहि वि अप्पं कारेइ उवउत्तो // 14 // विं. = ज्ञानाद्याराधनकर्ता / प्र. '= धर्मावश्यकयोगेषु भावितात्मा प्रमादपरिवर्जी / सम्यक्त्वज्ञानचारित्राणामाराधको भवति // 232 // प्रश. = जिनोक्तानुष्ठानाविनाभावी / ध.प. = गौरवितप्रीतिहेतुः क्रिया गौरवितसेवा च / द्वा. = चरमकाले निर्यापणरूपा / द्वा. = नीरूजत्वम्, * प्राक्तनसहजौत्पातिकरोगविरहत्वम् / = भावविशुद्धिरविसंवादनम् / त.भा. = ऋतं दुखं तत्र भवमार्तं तच्च तद्ध्यानं चैकाग्रचित्तत्वम् आर्त्तध्यानम्, * इष्टानिष्टार्थवियोगावियोगनिमित्तम्, * सविक्लवं चित्तमित्यर्थः / अ. = ऋतं दुःखम्, तत्र भवमार्त्तम्, यदि वा अतिः पीडा याचनं च तत्र भवमार्तम् / यो.शा. = ऋतं दुःखम्, तन्निमित्तो दृढाध्यवसायः, . ऋते भवमार्तं क्लिष्टम् / ध्या. = प्रशस्तं ज्ञानाद्युपकारकम् आलम्ब्यत इत्यालम्बनं प्रवृत्तिनिमित्तम्, शुभमध्यवसानमित्यर्थः / ध्या. 1/20 27/23 आरोग्यम् आर्जव: आर्तध्यानम् 12/9 9/6 10/1 3/73 आलम्बनम्

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