Book Title: Yog Granth Vyakhya Sangraha
Author(s): Kirtiyashsuri
Publisher: Suri Ramchandra Shatabdi Samiti
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________________ 10 20] [योगग्रन्थव्याख्यासंग्रहः | नाम व्याख्या गाथा = बाह्यप्रतिमादिविषयध्यानम् / यो.वि. आलयः = वसतिः सुप्रमार्जितादिलक्षणा, अथवा * स्त्रीपशुपण्डकविवर्जिता / गु. 3/137 आलोचनम् = आलोचनं विवरणं प्रकाशनमाख्यानं प्रादुष्करणमित्यनर्थान्तरम् / त.भा. 9/22 स्वकृतस्य पापस्य निश्शल्यतया गुरुसमक्षं प्रकटनम् / गु. 1/66 आलोचनाप्रायश्चित्तम् = वसहीओ हत्थसया बाहिं कज्जे गयस्स विहिपुव्वं / गमणाइगोयरा खलु भणिया आलोयणा गुरूणा // 7 // वि. 16/7 आवरणम् = आवियतेऽनेनावृणोतीति वा / श्रा. आवर्तः = आवर्तन्ते प्राणिनोऽस्मिन्निति संसारः / पञ्च. आवश्यकशुद्धिः = अवश्यंकरणीययोगनिरतिचारता / द्वा. 27/24 आवश्यकानि = नियमतः करणीयानि / ध्या. आवश्यकीसा. = अवश्यमित्यर्थेऽवश्यशब्दोऽकारान्तोऽप्यस्ति, ततोऽवश्यस्य अवश्यं कर्त्तव्यस्य, क्रिया आवश्यकी / सा. 4 = अवश्यंकर्तव्यैर्ज्ञानाद्यर्थप्रयोजनैनिता तत्प्रयोजना वा योपाश्रयादिनिर्गमक्रिया सा / पं. = अवश्यकर्त्तव्यगोचरा / सा. = गच्छंतस्सुवउत्तं गुरूवएसेण विहियकज्जेण / आवस्सिय त्ति सद्दो णेया आवस्सिया णाम // सा. आवेणिका = जे वेणिसंपयाया चित्ता सत्थेसु अपडिबद्ध त्ति / / ते तम्मज्जायाए सव्वे आवेणिया नेया // 2 // विं. आशयः = अध्यवसायस्थानविशेषः / षो. = चित्तपरिणामः / पञ्च. आशयमहत्त्वम् = चित्तस्य असङ्कचितदानादिपरिणामशालित्वम् / षो. आशयविशुद्धिः = नवमरसाभिव्यञ्जनया चित्तशुद्धिः / षो. आश्रवः (आस्रवः) = आत्मधर्मत्वे सति कर्मबन्धासाधारणकारणम् / त.उ. = कर्मबन्धहेतवः, मिथ्यात्वादयः / ध्या. __50 = मनोवाक्कायकर्माणि योगाः कर्मशुभाशुभम् / . यदास्रवन्ति जन्तूनामास्रवास्तेन कीर्तिताः // 74 // यो.शा. 4/74 आसंगः = अभिष्वंगः / द्वा. 18/18 12/2 39 3/2 3/5

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