Book Title: Yog Granth Vyakhya Sangraha
Author(s): Kirtiyashsuri
Publisher: Suri Ramchandra Shatabdi Samiti
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________________ करणम्] [29 नाम .. व्याख्या गाथा करणम् करूणा कर्म 38 54 कर्मनाशहेतुः [क] = आत्मनि तत्तद्विज्ञानोत्पादनम् / त.उ. 1/35 = दीनेष्वार्तेषु भीतेषु याचमानेषु जीवितम् / प्रतीकारपरा बुद्धिः कारूण्यमभिधीयते // 120 / / यो.शा. 4/120 = दुःखहानेच्छा / द्वा. 18/4 = परदुःखविनाशिनी / षो. 4/15 = मोहासुखसंवेगान्यहितयुता / षो. 13/9 = अनाचार्यकम्, * कादाचित्कम् / उ.प. = कम्मं च चित्तोपोग्गलरूवं जीवस्सऽणाइसंबद्धं / मिच्छत्तादिनिमित्तं णाएणमतीयकालसमं // 54 // यो.श. = मिथ्यादर्शनाऽविरति-प्रमाद-कषाय-योगैः क्रियते इति कर्म ज्ञानावरणीयादिः / ध्या. = हिंसा-रागोद्भवं कर्म... / ब्र.सि. = पूर्वकर्मापनयने तपः, कात्र्येन तदपनयने ज्ञानमनागत कर्माभावे च स्वकारणविघटनद्वारा संयमो हेतुः / अ.म. = शारीरस्पंदकर्मात्मा यदयं पुण्यलक्षणम् / कर्मातनोति सद्भोगात्कर्मयोगस्ततः स्मृतः // 3 // अध्या. 15/3 = यज्ज्ञानशीलतपसामुपग्रहं निग्रहं च दोषाणाम् / ___ कल्पयति निश्चये यत्तत्कल्प्यमकल्प्यमवशेषम् // 143 // प्रश. 143 * यत्पुनरुपघातकरं सम्यक्त्वज्ञानशीलयोगानाम् / / तत्कल्प्यमप्यकल्प्यं प्रवचनकुत्साकरं यच्च // 144 // प्रश. 144 = विधिः आचारः, * जिनस्थविरकल्पिकादिः, * कल्प्यं ग्राह्यम् / सा. = आभवत् प्रायश्चित्तदानप्रायश्चित्तयोः कल्पनाद्भेदनाद्वयवहरणादानाच्च कल्पव्यवहारौ / त.उ. 1/20 = आचेलक्यादिदशविधकल्पे स्थिताः प्रथमचरमजिनसाधवः / गु. 2/230 = रागद्वेषाभ्यां रहिता या सा / उ.र. 131 64 कर्मयोगः कल्प्याकल्प्यम् कल्पः कल्पव्यवहारौ कल्पस्थिताः कल्पिकप्रतिसेवा

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