Book Title: Yog Granth Vyakhya Sangraha
Author(s): Kirtiyashsuri
Publisher: Suri Ramchandra Shatabdi Samiti
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________________ अद्वेषः] [5 | नाम . व्याख्या गाथा 16/14 1/11 1/3 1/3 1/7 1/3 223 190 2/29 अद्वेषः = पक्षपातकृताप्रीतिपरिहारः / षो. अधिकरणम् = अधिक्रियते आत्माऽनेनासंयतसामर्थ्यपोषणत इति / द्वा. अधिगमः = अधिकं ज्ञानम् / त.उ. = अधिगमः अभिगम आगमो निमित्तं श्रवणं शिक्षा उपदेश इत्यनर्थान्तरम्, * अधिगमस्तु सम्यग्व्यायामः / त.भा. = गुर्वाद्युपदेशः / त.उ. = शिक्षागमोपदेशश्रवणान्येकाथिकान्याधिगमस्य / प्रश. अध्ययनम् . = अधीयत इति अध्ययनम् / ध्या. अध्यवसानम् = अध्यवसानम्-मन एकाग्रतालम्बनमित्यर्थः / ध्या. अध्यात्म: = आत्मन्येवैकाग्रचित्तव्यापारः / उ.र. = अतो ज्ञानक्रियारूपमध्यात्मं व्यवतिष्ठते / अध्या. = आत्मानमधिकृत्य स्याद्, यः पञ्चाचारचारिमा / शब्दयोगार्थनिपुणास्तदध्यात्म प्रचक्षते // 2 // * रूढ्यर्थनिपुणास्त्वाहु-श्चित्तं मैत्र्यादिवासितम् / अध्यात्म निर्मलं बाह्य-व्यवहारोपबृंहितम् // 3 // अ.उ. = आदिकर्मकमाश्रित्य जपो ह्यध्यात्ममुच्यते / देवतानुग्रहाङ्गत्वादतोऽयमभिधीयते // यो.बि. = उचितप्रवृत्तेतभृतो मैत्र्यादिभावगर्भ शास्त्राज्जीवादितत्त्वचिन्तनम् / यो.वि. = औचित्याद् वृत्तयुक्तस्य वचनात्तत्वचिन्तनम् / ____ मैत्र्यादिसारमत्यन्तमध्यात्म तद्विदो विदुः // यो.बि. = औचित्याद्वृत्तयुक्तस्य वचनात्तत्त्वचिन्तनम् / मैत्र्यादिभावसंयुक्तमध्यात्मं तद्विदो विदुः // द्वा. = गतमोहाधिकाराणामात्मानमधिकृत्य या / प्रवर्तते क्रिया शुद्धा तदध्यात्म जगुर्जिनाः // 2 // अध्या. = चित्रभेदरूपम् देवसेवाजपतत्त्वचिन्तनादिरूपम् / यो.वि. अध्यात्मध्यानरतः ___ = अन्तर्भावितध्यातृध्येयभावेनात्मनैव परापेक्षाबहिर्मुखे स्वस्वरूपे ध्यानमात्रनिष्ठां प्राप्तः / सा. 381 358

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