Book Title: Yog Granth Vyakhya Sangraha
Author(s): Kirtiyashsuri
Publisher: Suri Ramchandra Shatabdi Samiti
View full book text
________________ अन्तरङ्गम्] [9 नाम व्याख्या गाथा अन्तरङ्गम् अन्तरद्वारम् अन्तरात्मा 10/6 अन्यमुत् अपकारक्षमा = अभ्यन्तरपरिणामप्राप्तम् / उ.र. 67 = पुनः प्राप्ति:-प्रतिपतितस्य सतोऽन्यो लाभस्तन्मध्यः कालः / गु. 4/133 = कायादेः समधिष्ठायको भवत्यन्तरात्मा तु // यो.शा. 12/7 = चित्तरूपः / द्वा. = तत्त्वश्रद्धा ज्ञानं महाव्रतान्यप्रमादपरता च / मोहजयश्च यदा स्यात् तदांतरात्मा भवेद् व्यक्तः // 23 // अध्या. 20/23 = तदधिष्ठायकः (कायाद्यधिष्ठायकः), सम्यग्दर्शनादिपरिणतस्त्वन्तरात्मा, * ततः परं (गुणस्थानत्रयादुपरि) क्षीणमोहगुणस्थानं यावदन्तरात्मा / अ.म.. 125 * = प्रकृतकार्यान्यकार्यप्रीतिः / षो. 14/3 = मम दुर्वचनाद्यसहमानस्यायमपकारी भविष्यतीत्याशयेन -क्षमां कुर्वतः / द्वा. 28/7 = अवराहा खलु सल्लं एयं मायाइभेयओ तिविहं / वि. 15/13 = सर्वभावेषु मूळयास्त्यागः स्यादपरिग्रहः / यदसत्स्वपि जायेत मूर्च्छया चित्तविप्लवः // 24 // यो.शा. 1/24 = ये मन्दमतयोऽगीतार्था अपरिणतजिनवचनरहस्यास्ते / गु. 1/49 = आत्यन्तिको दुःखविगम इति / ध. 133 = विशेषोक्तो विधिः / उ.प. 781 = उत्सर्गानुरोधी / अ.म. = सूत्राबाधया गुरुलाघवालोचनपरोऽधिकदोषनिवृत्त्या शुभः, शुभानुबन्धी, महासत्त्वासेवित उत्सर्गभेद एव / ल.वि. = अध्वामौदर्यादिषु तद्विधायकम् / उ.र. 133 = उत्सृष्टविध्युत्तरविधिप्रधानम् / उ.र. 133 = विध्येकवाक्यतापन्नविशेषनिषेधपरम् / उ.र. 133 = अवगृहीते विषये सम्यगसम्यगिति गुणदोषविचारणा अध्यवसायापनोदोऽपाय: अपराधाः अपरिग्रहव्रतम् // अपरिणामाः अपवर्गः अपवादः // // अपवादसूत्रम् अपवादापवादसूत्रम् अपवादोत्सर्गसूत्रम् अपायः

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150