Book Title: Visheshavashyak Bhashyam Uttararddh
Author(s): Jinbhadra Gani Kshamashraman
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha
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विशेषाव कोट्याचार्य
वृत्ती
॥८७१॥
नाम आदेयनाम यशोनाम । तथा-संभवतो-यस्य यथासंभवं जिननाम, एतदुक्तं भवति-यदि तीर्थकरः प्रतिपत्ता ततस्तत् क्षपयति
अनादिसंबद्धत्वात् , इतरस्तु न क्षपयत्यबद्धत्वात् , तथा नरानुपूर्वीनाम चेति, अन्यभविकमपि, शेषास्तु नामकर्मप्रकृतयः क्षपकश्रेण्या क्षपिता
योगभव्यइति । तथाऽन्यतरद्वेदनीयं-सातमसातं वा, तथा नरायुः 'उच्च'त्ति उच्चैर्गोत्रं, 'सेसा जिणसन्तीओ दुचरमसयंमिति शेषा विचार: जिनसत्यः-सत्कर्मतयाऽवस्थिता नोदितास्ता उपान्त्ये निष्ठां नयन्तीति ॥ 'ओरा इत्यादि॥औदारिकादीनि शरीराणि सर्वाभिः 'विप्प
॥८७१॥ जहणाहिं'ति 'ओहा त्यागे' विशब्दपशब्दोपपदस्य जहातेस्त्यागार्थस्य करणे ल्युट्, ताभिस्त्यजति यद् भणितं तनिःशेषतया, ण | जहा सो पुव्वं त्यक्तवानिति । एवं-'तस्सो इत्यादि स्पष्टा ॥ अथ कर्मक्षयसिद्धसिद्धिप्रस्तावे प्रासङ्गिकमनुपातिवादाह-'नणु'इत्यादि। प्रागुक्तार्थ यावत्प्रकृतमाह
रिजुसेढीपडिवन्नो समयपएसंतरं अफुसमाणो । एगसमएण सिज्झइ अह सागारोवउत्तोसो ॥३७०७॥ अत्थि स देहो जो कम्मकारणं जो य कजमण्णस्स। कम्मं च देहकारणमत्थि य जं कजमण्णस्स ॥३७०८॥ बीयंजह उविणस्सइ नस्सइ मुत्तस्स तह चरिमदेहो। अहवाणभदेसो इव कालविसेसोऽहवा चरिमो॥३७०९॥ अहवा जमणादीओ संजोगो विकिर] जीवकम्मणोऽहिमओ। सो पारंपरएणं जत्तो कम्मट्टिई संता ॥३७१०४ जं संताणोऽणाई तेणाणतो य णायमेगन्तो। दीसइ संतोवि जओ कत्थइ बीयंकुरादीणं ॥३७११॥ अण्णयरमणिव्वत्तियकज बीयंकुराण जं विहयं । तत्थ हतो संताणो कुक्कुडिअंडाइयाणं व्व ॥३७१२॥ जह वेह कंचणोवलसंजोगोष्णातिसंततिगतोवि । वोच्छिजति सोवायं तह जोगो जीवकम्माणं ॥३७१३॥
AACCORALLAHABAD
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