Book Title: Visheshavashyak Bhashyam Uttararddh
Author(s): Jinbhadra Gani Kshamashraman
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha
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विशेषाव ० कोट्याचार्य वृत्तौ
॥९५२॥
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अहवा जहसंभवओ भदंतसद्दो जिणाइसक्खीणं । आमंतणाभिधाई तस्स क्खिज्जे थिरव्वयया ॥ ४२१५ ॥ गहियं जिणाइसक्खं मएत्ति तल्लज्जगोरव भयाओ । सामाइयाइयारे परिहरओ तं थिरं होइ ॥ ४२१६ ॥ अहवा भतं च तयं सामइयं चेइ भंतसामइयं । पत्तमलक्खणमेवं भंतेसामाइयं तं च ॥४२१७॥ नामाइवुदासत्थं नणु सो सावज्जजोगविरईओ । गम्मइ भण्णइ न जओ तत्थवि नामाइसन्भावो ॥४२१८॥ अंतस्स व सामइयं भंते सामाइयं जिणाभिहियं । न परप्पणीयसामाइयंति भंतेविसेसणओ ॥४२१९॥ रागद्दोसविरहिओ समोति अयणं अयोत्ति गमणंति । समगमणंति समाओ स एव सामाइयं नाम ।। ४२२० ॥ अहवा भवं समाए निव्वत्तं तेण तम्मयं वावि । जं तप्पओयणं वा तेण व सामाइयं नेयं ॥ ४२२९ ॥ अहवा समाई सम्मत्तनाणचरणाई तेसु तेहिं वा । अयणं अओ समाओ स एव सामाइयं नाम ||४२२२ || अहवा समस्स आओ गुणाण लाभोत्ति जो समाओ सो । अहवा समाणमाओ नेओ सामाइयं नाम ||४२२३|| अहवा सामं मित्ती तत्थ अओ (गमणं) तेण होइ सामाओ । अहवा सामस्साओ लाभो सामाइयं णेयं ॥४२२४|| सम्ममओ वा समओ सामाइयमुभयविद्धिभावाओ । अहवा सम्मस्स आओ लाभो सामाइयं होइ ॥ ४२२५||
अहवा निरुत्तविहिणा सामं सम्मं समं च जं तस्स । इकमप्पए पवेसणमेयं सामाइयं नेयं ॥४२२६ ॥ 'गुरु इत्यादि स्पष्टं यावदा वस्सयंपी' त्यादि, भदन्तशब्दं कुर्वता नित्यं गुरुपादमूले (बसनं) दर्शितं भवतीत्यतस्तद्ग्रहणं, तथा प्रत्येकमपि कारणतो व्याघातेन संवसतो यदभिशय्या निवास उक्तः कल्पे, अत्र भावार्थ:- जति खुड्डुलगा वसधी तो अन्नत्थ गंतूण
आमंत्रण
फलं सामा
यिकार्थश्व
॥९५२॥
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