Book Title: Visheshavashyak Bhashyam Uttararddh
Author(s): Jinbhadra Gani Kshamashraman
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha

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Page 459
________________ विशेषाव० कोट्याचार्य वृत्ती ॥९५१॥ KAROAkexkARCH भण्णइ गुरुकुलवासोवसंगहत्थं जहा गुणत्थीह । निच्चं गुरुकुलवासी हवेज सीसो जओऽभिहियं ॥४२०१।। आमंत्रण नाणस्स होइ भागी थिरतरओ सणे चरित्ते य । धन्ना गुरुकुलवासं आवकहाए न मुंचंति ॥४२०२॥ फलं सामागीयावासो रई धम्मे, अणाययणवजणं । निग्गहो य कसायाणं, एयं धीराण सासणं ॥४२०३।। यिकाश्च आवस्सयंपि निच्च गुरुपामूलम्मि देसियं होइ । वीसुपि हु संवसओ कारणओ जदभिसेज्जाए ॥४२०४।। | ॥९५१॥ एवं चिय सव्वावस्सयाइं आपुच्छिऊण कज्जाइं । जाणावियमामंतणवयणाओ जेण सब्वेसिं ॥४२०५।। सामाइयमाइमयं भदंतसहो य ज तदाईए । तेणाणुवत्तइ तओ करेमि भंतेत्ति सब्वेसु ॥४२०६॥ किच्चाकिच्चं गुरवो विदंति विणयपडिवत्तिहेउं च । उस्सासाइ पमोत्तुं तदणापुच्छाइ पडिसिद्धं ॥४२०७॥ गुरुविरहमि य ठवणा गुरूवएसोवदंसणत्थं च । जिणविरहम्मिवि जिणबिंबसेवणामंतणं सफलं ॥४२०८॥ रन्नो व परोक्खस्सऽवि जह सेवा मंतदेवयाए वा । तह चेव परोक्खस्सवि गुरुणो सेवा विणयहेउं॥४२०९॥ ८ अहवा गुरुगुणनाणोवओगओ भावगुरुसमाएसो । इह विणयमूलधम्मोवएसणत्थं जओऽभिहियं ॥४२१०॥ विणओ सासणे मूलं, विणीओ संजओ भवे । विणयाओ विप्पमुक्कस्स, कओ धम्मो? कओ तवो? ॥४२११।। विणओवयार माणस्स भंजणा पूयणा गुरुजणस्स । तित्थयराण य आणा सुयधम्माराहणाऽकिरिया।।४२१२॥ आयामंतणमहवाऽवसेसकिरियाविसग्गओ तं च । सामाइएगकिरियानियामगं तदुवओगाओ ॥४२१३॥ एवं च सव्वकिरियाऽसवन्नया तदुवउत्तकरणं च । वक्खायं होइ निसीहियादिकिरियोवओगुव्व ॥४२१४॥ NAAMKARAULANAKI

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