Book Title: Visheshavashyak Bhashyam Uttararddh
Author(s): Jinbhadra Gani Kshamashraman
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha
View full book text ________________
विशेषाव ० कोट्याचार्य
वृत्तौ
॥ ९४८॥
सुहमहवा नेव्वाणं तच्च सेसमुवयार ओऽभिमयं । तस्साहणं गुरुत्ति य सुहभन्ने पाणसण्णव्व ॥ ४१८७॥ जं च सियं खेहितोऽणुग्गहवं तं तओ सुहं तं च । अभयाइ तप्पयाया सुहमिह तन्भत्तिभावाओ ॥ ४१८८ ॥ अहवा भय सेवाए तस्स भयंतोत्ति सेवए जम्हा । सिवगइणो सिवमग्गं सेन्वो य जओ तदत्थीणं ॥ ४१८९॥ अहवा भा भाजो वा दित्तीए तस्स होइ अंतोत्ति । भाजतो वाऽऽयरिओ सो नाणतवोगुणजुईए ॥ ४१९९० ॥ अहवा तोsवेओ जं मिच्छत्ताइबंधहेऊओ । अहवेसरियाइ भगो विज्जइ से तेण भगवंतो ॥ ४१९१ ॥ नेरइयाइभवस्स व अंतो जं तेण सो भवतोत्ति । अहवा भयस्स अंतो होइ भयंतो भयं तासो ॥ ४१९२॥ नामाइ छविहं तं भावभयं सत्तहेहलोगाइ । इहलोगजं सभवओ परलोगभयं परभवाओ ||४१९३ ॥ किंचणमादाणं तब्भयं तु नासहरणाइओ णेयं । बज्झनिमित्ताभावे जं भयमाकम्हिअं तंति ॥ ४१९४॥ असिलोगभयमजसओ दुज्जीवमजीवियाभयं नाम । पाणपरिचायभयं मरणभयं नाम सत्तमयं ॥ ४१९५॥ अम गवाइस तस्सेह अमणमंतोऽवसाणमेगत्थं । अमइ व जं तेणंतो भयस्स अतो भयतोति ॥४१९६ ॥ अमरोगे वा अंतो रोगो भंगो विणासपज्जाओ । जं भवभयभंगो सो तओ भवंतो भयंतो य ॥ ४१९७॥ एत्थ भयंताणं पागयवागरणलक्खणगईए। संभवओ पत्तेयं द-ज-ग-बगाराइलोवाओ ॥४१९८ ॥ हस्सेकारंतादेसओ य भंतेत्ति सव्वसामण्णं । गुरुआमंतणवयणं विहियं सामाइयाईए ॥ ४१९९ ।। 'भदी'त्यादि ॥ भदिरयं धातुदर्थर्थः, कथमित्यत आह-कल्याणार्थः सुखार्थश्च तस्य च धातोर्भदन्तशब्दोऽयं निष्पन्नः, तत
भंतेशब्दार्थः
।। ९४८ ।।
Loading... Page Navigation 1 ... 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496