Book Title: Visheshavashyak Bhashyam Uttararddh
Author(s): Jinbhadra Gani Kshamashraman
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha

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Page 416
________________ विशेषाव कोट्याचार्य वृत्ती ॥९०८॥ ALSARSACROE दीसह य विसमफलदो विफलोय समाणसेवयाणंपि। भण्णइ य सुकयपुण्णो तो से रायप्पसाउत्ति॥३९९५॥ ४ नमस्कारकोवप्पसायहेउं च जं फलं नहि तदत्थमारंभो।न परप्पसायणत्थं च किंतु निययप्पसायत्थं ॥३९९६॥ पूजाभ्यां धम्माधम्मान परप्पसायकोवाणुवत्तिणोजम्हा । तो न परोत्ति पसण्णोधम्मो कुविउत्ति वाऽधम्मो?॥३९९७॥31 फलसिद्धिः तस्साहणसुण्णस्सवि जइवा धम्मो परप्पसायाओ। तो जो जस्स पसन्नो स तस्स देजा जगद्धम्मं ॥३९९८॥ ॥९०८॥ कुविओ हरेज सव्वं देजा धम्म व तहय पावति । अकयागमकयनासा मोक्खगयाणपि वा पडणं ॥३९९९॥ जइ वीयरागदोसं मुणिमकोसिज्ज कोइ दुट्ठप्पा । कोवप्पसायरहिओ मुणित्ति किं तस्स नाधम्मो?॥४०००। सवओ तस्साधम्मो जइ वंदंतस्स तो धुवं धम्मो। कोवप्पसायरहिए तह जिणसिद्धेऽवि को दोसो? ॥४००१॥ हिंसामि मुसं भासे हरामि परदारमाविसामित्ति । चिंतेज्ज कोइ न य चिंतियाण कोवाइसंभूई ॥४००२॥ तहवि अधम्मो धम्मो दयाइसंकप्पओ तहेहावि । वीयकसाए सवओऽधम्मो धम्मो य संथुणओ॥४००३।। तम्हा धम्माऽधम्मा जुत्ता निययप्पसायकोवाओ। धम्मत्थिणा पयत्तो कज्जो तो सप्पसायम्मि ॥४००४॥ सो य निययप्पसाओवरसंजिणसिद्धपूयणाउत्ति । जम्स फलमप्पमेयं तेण तयत्यो पयत्तोऽयं ॥४००५।। नाणाइमयत्ते सइ पुजा कोवप्पसायविरहाओ । निययप्पसायहेउं नाणाइतियं व जिणसिंद्धा ॥४००६॥ पुज्जा जिणाइवजा नहि मोक्वत्थं सरागदोसत्ति । अकयत्थभावोऽवि य दब्वट्ठाए दरिद्दव्व ॥४००७॥ . कलुसफलेण न जुजइ किं चित्तं तत्थ जं विगयरागो। संतेवि जो कसाए निगिण्हई सोवि तत्तुल्लो॥४००८॥ ARORASEX

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