Book Title: Visheshavashyak Bhashyam Uttararddh
Author(s): Jinbhadra Gani Kshamashraman
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha

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Page 417
________________ विशेषात्र० कोट्याचार्य वृचौ ॥९०९ ॥ न परोवयारओ चिय धम्मो न परोवयारहेउं च । पूयारंभो नणु सपरिणामसुद्धत्थमक्खाओ ||४००९ ॥ पूया परोवाराभावेऽवि सिवाय जिणवराईणं । परिणामसुद्धिहेडं सुभकिरियाओ य बंभं व ॥ दारं ॥ ४०१०॥ परहिययगया मेत्ती करेड़ भूयाण कमुवयारं सा ? । अवयारं दूरस्थो कं वा हिंसाइसकप्पो १ ||४०११ ॥ धम्माधम्मनिमित्तं तहावि तह चैव निरुवगारोऽवि । पूयासुहसंकप्पो धम्मनिमित्तं जिणाईनं ॥४०१२॥ arosa पराणुग्गलक्खणसंकप्पमेत्तओ चेव । फलमिह नउ पच्छा तक्क ओवगारावगाराओ ||४०१३॥ इहरोवउत्तभत्ताजिन्नाहवहम्मि दक्खिणेयस्स । देतस्स वहावत्ती तेणादाणप्पसंगो य ॥४०१४॥ न परपरिग्गहउ च्चिय धम्मो किंतु परिणामसुद्धीओ । पूयाऽपरिग्गहम्मिवि सा य धुवा तो तदारंभो ॥ इह चोयगमणुमोपगमणिसेहगमेव संपयाणंति । बहुमुणिपडिमाइ जओ न दाणमपरिग्गहं तेणं ॥ ४०१६ ॥ दाणपरिग्गहणम्मिवि धम्मो निययपरिणामसुद्धीओ। अपरिग हे वि जइस्सा को नाम परिग्गहग्गा हो ॥४०१७।। किं च परयियनियया मेत्ती भूएहिं संपरिग्गहिया । हिंसासंकप्पो वा जं धम्माधम्महे उत्ति || ४०१८ || एवं जिणाइपूया सद्वासंवेगसुद्धिहेऊओ। अपरिग्गहावि धम्माय होइ सीलव्वयाई व्व ॥ ४०१९ ॥ जं चि मुत्तिविमुक्का मुत्ता गुणराओं तो विसेसेणं । तेणं चिय ते पुज्जा नाणाइतियं व मोक्खत्थं ॥ ४०२० ॥ मुत्तिमओवि न मुत्ती इज्जइ किंतु जे गुणा तस्स । ते मुत्तिविमुत्तच्चिय नणु सिद्धगुणा विसेसेणं ॥ ४०२१ ॥ अहब मई मुत्तिमओ गुणपूया होह मुत्तिपूयाओ । तग्गुणसंबंधाओ सिद्धगुणाणं तु सा नत्थि ॥ ४०२२ ॥ 6 অ नमस्कारपूजाभ्यां फलसिद्धिः ।।९०९ ॥

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