Book Title: Vikram Pushpanjali
Author(s): Kalidas Mahakavi
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 13
________________ विक्रम-सूत्र तत्त्व के सर्वश्रेष्ठ उपदेष्टा महर्षि याज्ञवल्क्य की पत्नी मैत्रेयी ने भोग्यवस्तु-प्रधान और एकांततः विनश्वर सांसारिक वैभव का परित्याग करके अविनाशी अध्यात्मविद्या प्राप्त करने के लिये जो दृढ़ संकल्प किया उसके समान आदर्श विक्रम इतिहास में सर्वथा दुर्लभ है। सतीत्व के क्षेत्र में प्रात:स्मरणीया गांधारी का उदाहरण ध्रुव के समान अलौकिक विक्रम का परिचायक है। ओंकारपूर्वक जो वचन दिया जाता है, वह सदा सत्य ही करने के लिये होता है। इस प्रकार की मनोवृत्ति विक्रम की जनयित्री है। पृथिवी शैल सागरों को सुख से धारण करती है, किंतु वह असत्य का भार नहीं वहन कर सकती। - "सत्येनोत्तभिता भूमिः सूर्येणोत्तभिता द्यौः" वामन के विक्रम के लिये बलि के अडिग सत्य की आवश्यकता है। जीवन का प्रत्येक क्रम विक्रम में परिणत किया जा सकता है। जो विक्रम के रूप में परिणत हो जाता है, वही शाश्वत महत्त्व रखता है। विक्रम के तीन पद वामन के असंख्य पदों से अधिक महिमाशाली हैं। ब्रह्मचारी, गृहस्थ और यति. विक्रम के तीन चरण हैं, जिनसे यह जीवन नापा गया है। प्रथम पद में प्रदत्त अविकसित दैवी शक्तियों का पूर्ण विकास होता है, द्वितीय पद में सुविकसित वैभव का सुप्रयोग किया जाता है, और तृतीय पद में पुनः वितरित शक्तियों को परिपूर्ण करके अक्षय अध्यात्मकोश की उपलब्धि करने के लिये विक्रम किया जाता है। प्रथम दो पदों का ध्येय आभ्युदयिक कल्याण है और तृतीय पद का लक्ष्य निःश्रेयस सिद्धि है। इन दोनों प्रकार की सिद्धियों की सुप्राप्ति ही परम पुरुषार्थ है। विष्णुरूपी यज्ञ के यही त्रिपाद, तीन सवन, तीन अवस्थाएँ अथवा तीन विक्रम हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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