Book Title: Upasakdashangasutram
Author(s): Abhaydevsuri, 
Publisher: Agamoday Samiti

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Page 29
________________ गिहिधम्मं पडिवज्जइ २ ना तमेव धम्मियं जाणप्पवरं दुरूहइ २ ना जामेव दिसिं पाउन्भूया तामेव दिसि । पडिगया ॥ सू० ९॥ 'लहुकरण' इत्यत्र यावत्करणात् 'लहुकरणजुत्तजोइयमित्यादियोनवर्णको व्याख्यास्यमानसप्तमाध्ययनादवसेयः ॥ (सू०९) भन्ते त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वन्दइ नमंसइ २ ली एवं वयासी-पहू णं भन्ते ! आणन्दे समणोवासए देवाणुप्पियाणं अन्तिए मुण्डे जाव पवइत्तए ?. नो तिणटे समटे, गोयमा ! आणन्दे णं समणोवासए बहूई वासाई समणावालगपरियागं पाउणिहिइ २ ना जाव मोहम्म कप्पे अरुणे विमाणे देवत्ताए उववजिहिइ । तत्थ णं अथेगइशणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाइं दिई पष्णना । तत्थ णं आगन्दस्सऽवि समणोवासगस्स चत्तारि पलिश्रोवमाइंटिई एण्णता । तए णं समणे भगवं! महावीरे अन्नया कयाइ बहिया जाव विहरइ ॥२०॥ |१०॥तए णं से आणन्दे समणोवासए जाए अभिगयजीवाजीवे जाव पडिलामेमाणे विहरद्द । तए णं सा सिवानन्दा भारिया समणोवासिला जारा जाय पडिलागेमाणी विहरइ ।। सू०१॥ तए णं तस्म आणदस सामणोवारसास्स उचायाहिं सीलघरगुणदरमणपञ्चकखाणपोसहोवदामोहि अप्पाणं भामाणस्स चोहरू संबच्छराई बाइकन्ताई, एण्णरसमल्स संबच्छरस्म अन्तरा वट्टमाणस्स अन्नया कयाइ पुग्नावरनकालसयसि धम्मजागरि जागरमाणस्म इंमयारूवे अन्झथिए चिन्तिए पत्थिर मणोगए सम्म सम्प्पज्जित्था-एवं Jain Education a l For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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