Book Title: Upasakdashangasutram
Author(s): Abhaydevsuri, 
Publisher: Agamoday Samiti

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Page 36
________________ उपासकदशाङ्गे ॥१७॥ पडिलेइ २ ता भायणवत्थाई पमजद २ ना भायणाई उग्गाहेइ २ ता जेणेव समण भगवं महावीरे तणेव उवागच्छइ आनन्दा२ ना समणं भगवं महावीरं वन्दइ नमंसइ २ ता एवं वयासी-इच्छामिणं भन्ते ! तुम्भेहिं अब्भणुण्णाए छटुक्खमण- ध्ययनं पारणगंसि वाणियगामे नयरे उच्चनीयमज्झिमाइं कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्सायन्यिाए अडित्तए, अहासुहं देवाणुपिया ! मा पडिबन्धं करेह । तए णं गोयमे समणेणं भगवया महावीरेण अब्मणुषणाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तियाओ दूइपलासाओ चेइयाओ पडिणिक्खमइ २ ता अतुरियमचवलमसम्भन्ते जुगन्तरपरिलोयगाएं दिट्ठीए पुरओ ईरियं सोहेमाणे जेणेव वाणियगामे नयरे तेणेव उवागच्छइ २ ना वाणियगामे नयरे उच्चनीयमज्झिमाई कलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडइ । तए णं से भगवं गोयमे वाणियगामे नयरे जहा पण्णत्तीए तहा जाव भिक्खायरियाए अडमाणे अहापजतं भत्तपाणं सम्म पडिग्गाहेइ २ ता वाणियगामाओ पडिणिग्गच्छइ २ ता कोल्लायस्स सन्निवेसस्स अदूरसामन्तेणं वीईवयमाणे बहुजणसदं निसामेइ, बहुजणो अन्नमन्नस्स। एवमाइक्खइ ४-एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तेवासी आणन्दे नामं समणोवासए पोसहसालाए अपच्छिम जाव अणवकङ्घमाणे विहरइ । तए णं तस्म गोयमस्स बहुजणस्स अन्तिए एयमढे सोच्चा निसम्म अयमेयारूवे अज्झथिए ४-तं गच्छामि णं आणन्दं समगोवासयं पासामि, एवं सम्पेहेइ २ना जेणेव कोल्लाए ॥ १७ ॥ सन्निवेसे जेणेव आणन्दे समणोवामए जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, तर णं से आणन्दे ममणोवासए भगवं Jain Educationle For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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