Book Title: Upasakdashangasutram
Author(s): Abhaydevsuri,
Publisher: Agamoday Samiti
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तए णं से आणन्दे समणोवासए बहूहिं सीलवएहिं जाव अप्पाणं भावेत्ता वीसं वासाई समणोवासगपरियागं पाउणित्ता एक्कारस य उवासगपडिमाओ सम्मं कारणं फासिता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता सढेि भत्ताई। अणसणाए छेदेत्ता आलोइयपडिकन्ते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडिंसंगस्स महाविमाणस्म उत्तरपुरच्छिमेणं अरुणे विमाणे देवत्ताए उववन्ने । तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाई ठिई पण्णता, तत्थ णं आणन्दस्सवि देवस्स चनारि पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता । आणन्दे भन्ते ! देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं ३ अणन्तरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिइ कहिँ उववजिहिइ ?, गोयमा ! महाविदेहे वासे मिन्झिहिड । निक्खेवो ॥ सत्तमस्स अस्स उवामगदसाणं पढमं अज्झयणं समत्तं ॥ सू०१७॥ ___'निक्खेवओत्ति निगमनं, यथा “एवं खलु जम्बू ! समणेणं जाव उवासगदसाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमद्वे पणत्तेत्तिमि" ॥ (म. १७)
इत्युपासकदशाङ्के प्रथममानन्दाध्ययनम् ॥
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