Book Title: Upasakdashangasutram
Author(s): Abhaydevsuri,
Publisher: Agamoday Samiti
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नमसइ २ ना जामेव दिसि पाउब्भूए तामेव दिसि पडिगए। तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइ चम्पाओ पडिणिक्खमइ २ ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ( सू. २५) | 'अढे समढे त्ति अस्त्येषोऽर्थ इत्यर्थः, अथवा अर्थः-पयोदितं वस्तु समर्थः-सङ्गतः , हन्ता इति कोमलामन्त्रणवचनं, 'अज्जो' त्ति आर्या इत्येवमामन्त्र्यैवमवादीदिति, 'सहन्ति'त्ति यावत्करणादिदं दृश्यं-खमन्ति तितिक्खन्ति, एकार्थाश्चैते, विशेषव्याख्यानमप्येषामस्ति तदन्यतोऽवसेयमिति ॥ (सू. २५)
तए णं से कामदेवे समणोवासए पढम उवासगपडिमं उवसम्पजित्ताणं विहरइ, तए णं से कामदेव समणोवासए बहूहिं जाव भावेत्ता वीसं वासाइं समणोवासगपरियागं पाउणित्ता एक्कारस उवासगपडिमाओ सम्मं कारणं । फासेना मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झसित्ता सर्टि भत्ताई अणसणाए छेदेता आलोइयपडिक्कन्ते समाहिपत्ते काल-| मासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडिंसंयस्स महाविमाणस्स उत्तरपुरच्छिमेणं अरुणाभे विमाणे देवत्ताए उववन्ने, तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाई ठिई पण्णता कामदेवस्सऽवि देवस्स चत्वारि पलिओवमाई ठिई पण्णता । से गं भन्ते ! कामदेवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणन्तरं चयं । चइत्ता कहिं गमिहिइ कहिं उववजिहिइ ?, गोयमा ! महाविदेहे वासे सिन्झिहिइ । निक्खेवो ( सू. २६)
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