Book Title: Upasakdashangasutram
Author(s): Abhaydevsuri,
Publisher: Agamoday Samiti
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उपासकदशाङ्ग
१ आनन्दाध्ययनं
॥१८॥
भन्ते ! तुझे चेव एयरस ठाणस्स आलोएह जाव पडिवजह । तए णं से भगवं गोयमे आणन्देणं समणोवासएणं एवं- युत्ते समाणे मङ्किए कतिए विइगिच्छासमावन्ने आणन्दस्स अन्तियाओ पडिणिवखमइ २त्ता जेणेव दूइपलासे चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ रत्ता समणस्स भगवश्री महावीरस्स अदूरसामन्ते गमणागमणाए पडिक्कमइ २ ता एसणमणेसणं आलोएइ २ ना भत्तपाणं पडिदंसेइ २त्ता समणं भगवं महावीरं वन्दइ नमसइ२ त्ता एवं वयासी-एवं खलु भन्ते ! अहं तुब्भहि अभYण्णाए तं चेव सवं कहेइ जाव तए णं अहं सङ्किए ३ आणन्दस्स समणोवासगस्स अन्तियाओ पडिणिकख मामि २ ता जेणेव इहं तेणेव हवमागए, तं णं भन्ते ! किं आणन्देणं समणोवासएणं तस्स ठाणस्स आलोएयवं जाव पडिबजे यवं उदाहु मए ?, गोयमा इ समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी-गोयमा ! तुमं चेव णं तस्स ठाणस्स आलोएहि जाव पडिवजाहि, आणन्दं च समणोवासयं एयमढें खामेहि । तए णं से भगवं गोयमे समणस्स भगवओ महावीरस्स तहत्ति एयमद्रं विणएणं पडिसुणेइ
त्ता तस्स ठाणस्स आलोएइ जाव पडिवजइ, आणन्दं च समणोवासयं एरम, खामेइ । तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइ बहिया जणवयविहारं विहरइ ।। सू० १६॥ | 'उरालण'मित्यादिवर्णको मेघकुमारतपोवर्णक इव व्याख्येयः, यावदनवकाङ्कन विहरतीति ॥ 'गिहमज्झावसन्तस्स'त्ति गृहमध्यावसतः, गेहे वर्तमानस्येत्यर्थः ॥ 'सन्ताणमित्यादय एकार्थाः शब्दाः॥ 'गोयमा इत्ति हे गौतम ! इत्येवमामन्त्र्यति ॥ (म. १६)
१८ ॥
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