Book Title: Upasakdashangasutram
Author(s): Abhaydevsuri,
Publisher: Agamoday Samiti
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गोयमं एजमाणं पासइ २त्ता हट्ठ जाव हियए, भगवं गोयमं वन्दइ नमंसह २ ना एवं वयासी-एवं खलु भन्ते ! अहं । इमेणं उरालेणं जाव धमणिसन्तए जाए, न संचाएमि देवाणुप्पियस्स अन्तियं पाउच्मवित्ता णं तिक्खुत्तो मुद्धाणेणं का पाए अभिवन्दित्तए, तुम्भे णं भन्ते ! इच्छाकारेणं अणभिओएणं इओ चंच एह, जा णं देवाणुप्पियाणं तिक्खुत्तो मुद्धाणेणं पाएमु वन्दामि नमसामि । तए णं से भगवं गोयमे जेणेव भणन्दे समणोवासए तणेव उवागच्छइ ।। ॥ मू० १५॥
तए णं से आणन्दे समणोवासए भगवओ गोयमस्म तिक्खुत्तो मुद्धाणणं पाएसु वन्दइ नमसइ २त्ता एवं । वयासी-अत्थि णं भन्ते! गिहिणो मिहिमज्झावसन्तस्स ओहिनाणे समुप्पज्जइ ?. हन्ता अत्थि. जइ णं भन्ते ! गिहिणो जाव समुप्पजइ, एवं खलु भन्ते ! ममावि गिहिणो गिहिमन्झावसन्तस्स ओहिनाणे समुप्पन्ने-पुरस्थिमेणं लवणसमुद्दे पश्च जोयणसयाइं जाव लोलुयच्चुयं नरयं जाणामि पासामि । तए णं से भगवं गोयम आणन्दं समणोवासयं एवं वयासी-अत्थि णं आणन्दा ! गिहिणो जाव समुप्पजइ, नो चेव णं एमहालए, तं णं तुमं आणन्दा ! एयस्स टाणस्स आलोएहि जाव तवोकम्मं पडिवजाहि । तए णं से आणन्दे समणावासए भगवं गोयमं एवं वयासी-अस्थि णं भन्ते ! जिणवयणे सन्ताणं तच्चाणं तहिाणं सब्भूयाणं भावाणं आलोइजड जाव पडिवजिज्जड ?, नो इणद्वे समढे, जइ णं भन्ते ! जिणवयणे मन्ताणं जाव भावाणं नो आलोइजद जाव तवोकम्मं नो पडिवजिजइ तं णं
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