Book Title: Upasakdashangasutram
Author(s): Abhaydevsuri, 
Publisher: Agamoday Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 52
________________ उपासक दशाङ्गे ध्ययनम् ॥२५॥ त्ति लौकिकानुकरणभाषा, 'पच्छिमेणं भाएण' ति पुच्छेनेत्यर्थः, 'निकुडेमि' ति निकुट्टयामि प्रहण्मि 'उजलं' ति उज्ज्वला २ कामदेवाविपक्षलेशेनाप्यकलङ्कितां, विपुलां शरीरव्यापकत्वात्, कर्कशां कर्कशद्रव्यमिवानिष्टां, प्रगाढा-प्रकर्षवती चण्डा-रौद्रां दुःखांदुःखरूपां, न सुखामित्यर्थः, किमुक्तं भवति-'दुरहियासं' ति दुरधिसद्यामिति (मू. २२) तए णं से देवे सप्परूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं जाव पासइ २ ता जाहे नो संचाएइ कामदेवं समणोवासयं निग्गन्थाओ पावयणाओ चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा ताहे सन्ते ३ सणियं सणियं पच्चोसक्कइ २ ता पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ २ ता दिव्वं सप्परूवं विप्पजहइ २ ता एगं महं दिव्दं देवरूवं विउव्वइ हारविराइयवच्छं जाव दस दिसाओ उज्जोवेमाणं पभासेमाणं पासाईयं दरिसणिजं अभिरूवं पडिरूवं दिव्वं देवरूवं * विउब्वइ २ ता कामदेवस्स समणोवासयस्स पोसहसालं अणुप्पविसइ २ ता अन्तलिक्खपडिवन्ने सखितिणियाइं| पञ्चवण्णाई वत्थाई पवरपरिहिए कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी-" हंभो कामदेवा समणोवासया ! धन्ने सि णं तुमं देवाणुप्पिया ! सपुण्णे कयत्थे कयलक्खणे सुलद्धे णं तव देवाणुप्पिया ! माणुस्सए जम्मजीवियफले, जस्स णं तव । निग्गन्थे पावयणे इमेयारूवा पडिवत्ती लद्धा पत्ता अभिसमन्नागया। एवं खलु देवाणुप्पिया ! सक्के देविन्दे देवराया । जाव सकसि सीहासणंसि चउरासीईए सामाणियसाहस्सीणं जाव अन्नेसिं च बहणं देवाण य देवीण य मज्झगए ॥२५॥ एवमाइक्खइ ४–एवं खलु देवा ! जम्बुद्दीवे दीवे भारहे वासे चम्पाए नयरीए कामदेवे समणोवासये पोसहसालाए Jain Education 1143 For Personal &Private Use Only Mallainelibrary.org|

Loading...

Page Navigation
1 ... 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110