Book Title: Upasakdashangasutram
Author(s): Abhaydevsuri,
Publisher: Agamoday Samiti
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उपासकदशाओं
आनन्दाध्ययनं
॥१६॥
माम्, सा चेयम्-'पेसेहि' आरम्भं सावजं कारवेइ नो गुरुयं । पुबोइयगुणजुत्तो नव मासा जाव विहिणा उ ॥ 'दसमिति दशमी उद्दिष्ट्रभक्तवर्जनप्रतिमां, सा चैवम्-'उद्दिष्ट्रकडं भत्तपि वजए किमुय सेसमारम्भ । सो होइ उ खुरमुप्डो सिहलिं वा धारएकोइ ॥१॥ दत्वं पुदो जाणं जाणे इइ वयइ नो य नो वेति । पुबोदियगुणजुत्तो दस मासा कालमाणेणं ॥२॥ 'एक्कारसमिति एकादशी श्रमणभूतप्रतिमां, तत्स्वरूपं चैतत-'खुरमप्डो लोएण व रयहरणं ओग्गहं च घेत्तूणं । समणभूओ विहरइ धम्म कारण फासेन्तो ॥१॥ एवं उक्कोसेणं एक्कारस मास जाव विहरेइ । एक्काहाइपरेणं एवं सवत्थ पाएणं ॥ २॥ इति ॥ (मु. १३)
तए णं से आणन्दे समणोवासए इमणं एयारूवेणं उरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहियेणं तवोकम्मेणं मुक्त जाव किसे धमणिमन्तए जाए॥ तए णं तस्स आणन्दस्स समणोवासगस्स अन्नया कयाइ पुत्वरत्ता जाव धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झस्थिए ५.-एवं खलु अहं इमेणं जाव धमणिसन्तए जाए, तं अत्थि ता मे उट्ठाणे - कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कारपरक्कमे मद्धाधिइसंवेगे, तं जाव ता में अस्थि उट्ठाणे सद्धाधिइसंवेगे जाव य मे धम्मा
१ प्रेष्यैरारम्भं सावा कारयति नो गुरुकम । पूर्वोदितगुण युक्तो नव मासान् यावद्विधिनैव ॥१॥
२ उद्दिष्टकृतं भक्तमपि वर्जयति किमुत शेषमारम्भम् । स भवति तु चरमुण्डः शिखा वा धारयति कोऽपि ॥१॥ द्रव्यं पृष्टो जानन जानामीति नो वश नवति । पूर्वोदितगुणयुक्तो दश मासान् कालमानेन ॥२॥
३ क्षुरमुण्डो लोचेन वा रजोहरणमवग्रहं च गृहीत्या । अमणभूता विहरति धर्म कायेन स्पृशन् । १॥ एवमुत्कृष्नैकादश मासान यावत् विहरति । काहादेः परतः एवं सर्वत्र प्रायेण ॥२॥
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