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अभयकुमार श्रेणिक राजा के मनोनीत मंत्री थे। वे जटिल से जटिल समस्याओं को अपनी कुशाग्र बुद्धि से सुलझा देते थे। उन्होंने मेघकुमार की माता धारिणी" और कुणिक की माता चेलना का दोहद अपनी कुशाग्रबुद्धि से संपन्न किया। उन्होंने अपने पिता श्रेणिक का विवाह चेलना से संपन्न कराया था। उनके बुद्धि के चमत्कार की अनेक घटनाएं जैन साहित्य में उल्लिखित हैं । उज्जयिनी के राजा चण्डप्रद्योत द्वारा श्रेणिक के लिए उत्पन्न विकट राजनैतिक संकट को अभयकुमार ने दूर किया था। धर्मरत्न प्रकरण" के अभयकुमार कथा नामक अध्ययन में वर्णित है,कि द्रमुक लकड़हारे द्वारा प्रवज्या ग्रहण करने पर लोगों ने उसका मजाक उड़ाया। जब अभयकुमार को यह बात मालूम हुई तब उसने सार्वजनिक स्थान पर एक-एक करोड़ स्वर्णमुद्राओं के तीन ढेर लगवाकर यह घोषणा करवायी कि जो आजीवन स्त्री, अग्नि और सचित्त जल का त्याग करे वह इन मुद्राओं को ले सकता है। कोई आगे नहीं आया । तब उन्होंने द्रुमक मुनि के उपहास के लिए उन आलोचकों की भर्त्सना की। तब वे लोग द्रुमक मुनि के महान तप से प्रभावित हुए । अभयकुमार ने आईक कुमार को धर्मोपकरण उपहार में दिये । जिससे प्रभावित होकर वह मुनि बना।" अभयकुमार के संपर्क से ही राजगृह का कसायी काल शौकरिक का पुत्र सुलसकुमार भगवान का परम भक्त बना।" भगवान महावीर के मुख से अन्तिम मोक्षगामी राजा के रूप में उदयन का नाम सुनकर अभयकुमार चिंतित हो गया कि यदि मैं राजा बन गया तो मोक्ष नहीं जा सकूँगा। इसलिए कुमारावस्था में ही दीक्षा ग्रहण करने की अनुमति पिता से मांगी। पिता ने कहा कि जिस दिन मैं क्रुद्ध होकर तुम्हें मुंह न दिखाने को कहूं, उस दिन तुम दीक्षा ग्रहण कर लेना । एक दिन रानी चेलना के चरित्र पर संदेह कर राजा ने अभयकुमार को चेलना का महल जला देने का आदेश दिया। अभयकुमार ने रानी और बहुमूल्य वस्तुओं को महल से निकालकर उसके महल में आग लगा दी । उधर भगवान महावीर से पूछने पर राजा को पता चला कि चेलना पूर्ण पतिव्रता है तो पश्चात्ताप करता हुआ महल में लोटा। रास्ते में अभयकुमार मिला । पूछने पर उसने महल में आग लगाने की बात कही । इस पर क्रोधित होकर राजा ने उसे कभी मुंह न दिखाने को कहा । इसी बात की प्रतीक्षा में रहने वाले अभयकुमार ने उसी दिन दीक्षा ग्रहण कर ली।
बौद्ध साहित्य में भी अभय राजकुमार का वर्णन प्राप्त होता है। बौद्ध साहित्य में अभय का पिता श्रेणिक तथा माता उज्जयिनी की गणिका पद्मावती है। अभयराजकुमार ने अपनी प्रकृष्ट प्रतिभा से सीमा विवाद को सुलझाया था। जिससे प्रसन्न होकर बिम्बसार ने एक सुन्दर नर्तकी उसे उपहार में प्रदान की। मज्झिम निकाय के अभय कुमार सुत्त प्रकरण में निगण्ठ नायपुत्त (महावीर) के कहने पर उसका बुद्ध से शास्त्रार्थ का प्रसंग उल्लिखित है।" संयुत्तनिकाय में भी अभयकुमार का बुद्ध से साक्षात्कार होने का उल्लेख है । वह बुद्ध से पुरणकाश्यप के मत से संबंधित एक प्रश्न करता है ।५ धम्मपद अट्ठकथा के अनुसार जब अभयकुमार नर्तकी की मृत्यु से दुःखित होकर बुद्ध के पास गया और बुद्ध ने धर्मोपदेश दिया, तब उसे श्रोतापत्ति फल
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तुलसी प्रज्ञा
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