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के शब्दों में मृत्यु की सीमा को स्पर्श करने लगती है, लेकिन वाल्मीकि की ऊर्मिला का तो कोई प्रमाद भी नहीं है न कोई शाप ही है ।
यद्यपि यह सत्य है कि महर्षि वाल्मीकि को मुख्यतः राम और सीता का चरित्र-चित्रण ही अभिप्रेत था परन्तु काव्यापूर्ति तथा कथा विस्तार के लिए उन्होंने कई पात्रों का रोचक और मनोहर वर्णन किया है किन्तु ऊर्मिला का तो उसके पिता जनक के द्वारा नाम निर्देश कराकर ही उनकी वाणी मूक हो जाती है ।
दूसरी ओर वाल्मीकि, पति संग के लिये सीता से कहलवाते हैं कि यह तो मात्र चौदह वर्ष की बात है' पतिव्रता स्त्री तो सैकड़ों-हजारों वर्षों तक असहनीय वेदना को भी सह सकती है याद उसका पति उसके साथ हो
"
' एवं वर्ष सहस्राणि शतं वापि त्वया सह ।
व्यतिक्रमं न पेतस्यामि स्वर्गोऽपि हि न मे मतः ।। "
राम के पुनः समझाने पर सीता उनके लिए कटूक्ति का प्रयोग करती है । राम को कापुरुष तक कह डालती है
" किं त्वामन्यत वैदेहः पिता मिथिलाधिपः ।
देती है
राम जामात्तरं प्राप्य स्त्रियं पुरुष विग्रहम् ॥
इतना होने पर भी जब राम नहीं मानते है तो वह आत्म हत्या की धमकी
"यदि मां दुखितामेव वनं नेतुं न चेच्छसि ।
विषमग्नि जलं वाहमास्थास्ये मृत्युकारणात् ।।'
"यदि आप इस प्रकार दुःख में पड़ी हुई मुझ सेविका को अपने साथ वन में ले जाना नहीं चाहते तो मैं मृत्यु के लिए विष खा लूंगी, आग में कूद पडूंगी, अथवा जल में कूद जाऊंगी।"
इस तरह पति के चरणों को ही सर्वस्व मानने वाली सर्वस्व समर्पिता सीता जो प्रतिपल पति का संग चाहने वाली है, वह भी भूल जाती है कि ऊर्मिला के पति लक्ष्मण भी राम के साथ वन जा रहे हैं तब ऊर्मिला पति से अलग होकर पातिव्रत्य धर्म का निर्वाह और पति के वियोग में जीवन धारण कैसे कर पाएगी ?
अपने कर्तृव के प्रति प्रतिपल सचेष्ट रहने वाले राम भी इस व्यक्तित्व के प्रति उपेक्षा का भाव ही प्रदर्शित करते हैं, जबकि स्वयं उन्होंने ही अपने अनुज लक्ष्मण को अपने साथ वन में चलने की अनुमति दी है। साथ ही वे यह भी जानते हैं कि पतिव्रता स्त्री पति के वियोग में जीवन धारण नहीं कर सकती, जैसा कि उन्होंने स्वयं स्वीकार किया है
" पतिहीना तु या नारी न सा सक्ष्यति जीवितुम् । काममेवंविधं राम त्वया मम निर्दशितम् ।। "
इस तरह तो राम पर यह आरोप लग जाता है कि वह अनुज हित को चाहने वाले नहीं थे, इतना ही नहीं वाल्मीकि का यह पात्र अपने उस पति के द्वारा भी उपेक्षित है जिसके लिए वह पातिव्रत्य धर्म का निर्वाह करती है । पत्नी से अलग होकर
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तुलसी प्रज्ञा
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