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बीस विहरमाण
मुनि गुलाबचन्द्र निर्मोही'
वर्तमान में विद्यमान तीर्थंकर को विहरमाण कहा जाता है । अढाई द्वीप (मनुष्य क्षेत्र) में कम से कम २० तीर्थकर हर समय निश्चित रूप से मौजूद रहते हैं। उनकी अधिकतम संख्या १७० तक हो सकती है। वर्तमान २० तीर्थंकरों में से ४ जम्बूद्वीपवर्ती महाविदेह क्षेत्र में, ८ धातकी खंडवर्ती दो महाविदेह क्षेत्रों में तथा ८ अर्द्ध पुष्करवर्ती दो महाविदेह क्षेत्रों में विचरण करते हैं। महाविदेह क्षेत्र जम्बूद्वीप के मध्य भाग में अवस्थित है। यह पूर्व से पश्चिम एक लाख योजन लम्बा तथा उत्तर-दक्षिण में ३३६८४ योजन चौड़ा है। इसके बीच में मेरु पर्वत होने से यह पूर्वमहाविदेह और पश्चिम महाविदेह-इन दो भागों में विभक्त हो गया है। पूर्व महाविदेह में सीता नदी और पश्चिम महाविदेह में सीतोदा नदी होने से उनके भी दोदो भाग हो जाते हैं।
इस प्रकार महाविदेह के चार भागों में से प्रत्येक की आठ-आठ विजय (संभाग) होती हैं अर्थात् एक महाविदेह की बत्तीस विजय होती है। जम्बूद्वीप का एक महाविदेह, धातकी खंड के दो महाविदेह तथा अर्धपुष्कर के दो महाविदेह—इस प्रकार पांच महाविदेह होते हैं । सबकी संरचना एक समान होने से उनके कुल २० भाग और १६० विजय होती है। एक भाग में कम से कम एक तीर्थंकर अवश्य होने से २० तथा प्रत्येक विजय में एक-एक तीर्थंकर होने से अधिकतम १६० तीर्थकर हो जाते हैं। जम्बूद्वीप, धातकीखंड तथा अर्धपुष्कर में कुल पांच भरत क्षेत्र और पांच ऐरवत क्षेत्र हैं। उनमें प्रत्येक में एक-एक तीर्थकर होने से १० तीर्थकर हो जाते हैं। इस प्रकार भरत, ऐरवत और महाविदेह के तीर्थकरों की अधिकतम संख्या एक साथ १७० तक हो सकती है। दूसरे तीर्थंकर अजित प्रभु के समय में तीर्थंकरों की यह उत्कृष्टतम संख्या हुई थी किन्तु २० तीर्थकर तो शाश्वत रूप से मनुज्य क्षेत्र में विचरण करते ही हैं । उनके नाम हैं१. श्री सीमन्धर प्रभु
६. श्री स्वयंप्रभ प्रभु २. श्री युगमन्धर प्रभु
७. श्री ऋषभानन प्रभु ३. श्री बाहु प्रभु
८. श्री अनन्तवीर्य प्रभु ४. श्री सुबाहु प्रभु
९. श्री सूरप्रभ प्रभु ५. श्री सुजाति प्रभु
१०. श्री विशालधर प्रभु
बल्ड २२, अंक ४
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