Book Title: Tulsi Prajna 1996 01
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 234
________________ ३१. बच्छराज दूगड़-० पर्यावरण-एक आध्यात्मिक दृष्टिकोण २०११-२१४७.५४ ० अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति और शांति शोध २०।३।२२५-२३० ० शांति शिक्षा का स्वरूप और विकास २११११५१-५८ ० संघर्ष-निराकरण २१।२।१८७-२०१ ३२. बव्वी कुमारी- ० मृच्छकटिककालीन भारतीय संस्कृति २२।१।६१-६८ ३३. मागचन्द्र जैन 'भास्कर'-- • जैन-बौद्ध दर्शन के कर्मवाद की कतिपय विशेषताएं २११४१५१-५६ ३४. मधुरिमा मिश्र- भवभूति की दृष्टि में परिवार का स्वरूप २२।१।६९-७२ ३५. मनोहर शर्मा-- ० राजस्थानी भाषा में खड़ी बोली का प्रयोग २२।३।२२७-२३० ३६. ममता कुमारी- वाल्मीकि रामायण की ऊर्मिला २२।४।३२५-२९ ३७. मुन्नी जोशी- ० मार्कण्डेय पुराण में देवीशक्ति का स्वरूप २०१३।२०३-२०८ ३८. मुरारी शर्मा- • जैन योग और संगीत २०११-२।१४३-४७ ३९. मंगलाराम ---- ० अहिंसा की दार्शनिक पृष्ठभूमि । २२।३।१७९-१९० ४०. रघुवीर वेदालंकार--- ० वाक्पदीय में काल की अवधारणा २१।३।२६७-२७१ ४१. रामदीप राय – ० कविराज राजशेखर रचित 'कर्पूर मंजरी' २२।२।१२१-१२६ ४२. राजवीरसिंह शेखावत - कुन्दकुन्द के दर्शन में चारित्र __का स्वरूप २०११-२०७५-८८ ० कुन्दकुन्द के दर्शन में उपयोग की अवधारणा २०१३।१७१-१७६ • वैदिक साहित्य में तत्व विचार २२।२।१०१-११० ४३. राजीव कुमार- • ब्राह्मणों की दार्शनिक मान्यताएं २१।२।११५-११९ ४४. लोकेश्वर प्रसाद शर्मा -- ० रामस्नेही संत रामचरणजी पर भीखणजी का प्रभाव २०॥३॥१५७-१६४ ४५. लज्जा पंत-- . सारस्वत व्याकरण में समास २११२।१५१-१५७ . ० रत्नावली में अलंकार सौन्दर्य २२।२।१४५-१५४ ४६. विजयरानी- तस्मान्न बध्यते--एक विवेचन २११११४५-५० . वाल्मीकि रामायण के दार्शनिक तत्त्व । २२।३।२१७-२२६ ४७. विनोद कुमार पाण्डेय- . जैन दर्शन में संल्लेखना २१।३।२६१-२६६ ४८. शिव प्रसाव- • काम्यक गच्छ २११३।२८१-२८४ ४९. सरस्वती सिंह-- • आख्यात एवं धातु का दार्शनिक स्वरूप २२।१।२५-२८ ५०. सुनीता जोशी---- उपमा अलंकार के स्वरूप लक्षण २२।४।३०३-३०९ ५१. सुबोध कुमार नंद • वैदिक क्रियापद : एक विवेचन २२।१।१२-१४ ५२. सुभाष चन्द्र सचदेवा-० अनेकान्त की सार्वभौमिकता २२।२।९७-१०० खण्ड २२, अंक ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246