Book Title: Tulsi Prajna 1996 01
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 236
________________ ६८. साध्वी संचित यशा ६९. समणी ऋजुप्रज्ञा ७०. समणी कुसुमप्रज्ञा७१. समणी चैतन्य प्रज्ञा -0 स्तुति तत्त्व • दशवैकालिक और धम्म पद में भिक्षु हरिकेशीय आख्यान पंचमहाव्रत एक संक्षिप्त विवेचन ७२. समणी प्रसन्न प्रज्ञा ८२. प्रतापसिंह - • ८३. शक्तिधर शर्मा • आत्म परिमाण ७६. समणी स्थित प्रज्ञा २२, अंक ४ ० 19 ७३. समणी मल्लिप्रज्ञा७४. समणी प्रतिमा प्रज्ञा-७५. समणी मंगल प्रज्ञा Jain Education International ० ० निर्युक्ति के रचनाकार ध्यान द्वात्रिंशिका • भगवती में सृष्टि तत्त्व • भक्ति और आराध्य का स्वरूप ० कर्पूरमंजरी का सौन्दर्य निकष • मनोविकास की भूमिकाएं काल क्रम और इतिहास खण्ड ७७. गणपतिसिंह - ० सोलंकी राजवंश का यायावरी इतिहास गुलाबचंद निर्मोही - ० वेद और आगमकाल में पर्दा प्रथा ७९. चंद्रकांतबाली -- विक्रम संवत ३६ ईसवी पूर्व ७८. ८०. नीलम जैन - ० जैन मेघदूत के रचनाकार आचार्य मेरुतंग ८१. परमेश्वर सोलंकी - ० भाबरा की देवलियां अनेकांत दृष्टि का व्यापक उपयोग ० सूत्रकृतांग में कर्म संबंधी चिन्तन • ज्ञान का स्वरूप विमर्श • कर्म सिद्धांत और क्षयोपशमिक भाव ● 'संबोधि' के आगमिक स्रोत O प्रेक्षाध्यान की मनोवैज्ञानिकता • 'संबोधि' में प्रयुक्त छन्द ० 'संबोधि' में कर्मवाद ८४. श्रीचंद कमल' ८५. संदीप कुमार - ० शैव जैन तीर्थं ८६. हनुमानमलजी ( सरदारशहर) ● भारत में ईशामसीह का आगमन ० नव कुरूक्षेत्र निर्माण - प्रशस्ति सृष्टि संवत् • मास और राशियों का निर्धारण • मानव और देवताओं का कालमान वटेश्वर • विक्रमण संवत्सर न्यूनाधिक मास २०।३।२३७-२४२ २१।१।३९-४४ २१।२।१२७-१३४ २१।३।२८५-९१ २२।३।२६७-७४ २०११ - २।१०७-११४ For Private & Personal Use Only २०।३।१९७ - २०२ २१।१।३३-३८ २०/४/२६५-२७२ २२।३।१३७-४४ २२।४।३११-१४ २०११-२।२१-२८ २११४१७१-७८ २१।१।११-२६ २१।४।५७ - १४ २०११-२१२९-४२ २०१३।२३१-३६ २०।४।३१७-३२६ २१/४/६५-६७ २२/११०१-१४ २२।३।११-१६ २२।३।०५-१० २२।४।१५-१८ २२।१।२९-३२ २२।३।०३-०४ २२/४१०७-१४ २२।१।३३-३८ २२/४/०३-०६ २२।१।१५-२० २२।४।१९-२२ २२.१२१-२८ www.jainelibrary.org

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