Book Title: Tulsi Prajna 1996 01
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 237
________________ प्रकोणकम् खण्ड ८७. गणपतिसिंह - ० मरुमण्डल की धारा नगरी भीनमाल २।२।२२९-२३० ८८. जयचंद शर्मा- ० तेरापंथ शब्द-वैज्ञानिक अध्ययन २०१४/३४७-८ ० संगीत संबंधी एक रहस्यमय पद २१॥३॥३४१-४३ ० णमो सिद्धाणं: नाद सौन्दर्य २२।३।१९-२१ ८९. जीतेन्द्र वी शाह- ० श्री विनय विजयोपाध्यायविरचित नयकणिका २११२।२०९-२१४ ९०. झूमरमल बैंगानी-० नक्षत्र भोजन के मांस परक शब्दों का अर्थ २२।३।०७-१७ ९१. निर्मला चोरडिया- जैन बौद्धों में प्रव्रज्या के हेतु २२।४।१५-२० ९२. परमेश्वर सोलंकी--- ० जयोदय महाकाव्य में प्रतिबिम्ब अद्यतन इतिहास २१११।९७-१०१ • रोडेराव की राउरवेल का मूलपाठ २२।२।०९-२० ० ४५ जैनागमों का सुवर्णाक्षरी मूलपाठ । २२।२।५१-५३ • वृद्धि नवकार मंत्र कल्प २२।३।०३-०५ ० किं नाग्न्यम् १ २२।४।०९-१३ ० बन्यो भवेत् स कालुरामः २२।४।२१-२४ ९३. प्रबोध चंद बागची- ० बंगदेश में जैनधर्म का प्रारम्भ २१।१।१११-११४ ९४. प्रियका प्रियदशिनी-० कथानक रूढियों के आलोक में संस्कृत प्राकृत के पद्य कथाकाव्य २१।२।२२३-२२८ ९५. फणीलाल चक्रवर्ती - ० नागौर इतिहास के झरोखे से २०१४१३४५-४६ ९६. महावीर शास्त्री-- ० प्राकृत बिना संस्कृत पंगु है । २१।१।१०७-१०९ ९७. मुनि गुलाबचन्द 'निर्मोही -• बीस विहरमान २२।४।०३-०७ ९८. मुनि दुलहराज-- ० योगविशिका २२२२।०१-०८ ९९. मुनि श्रीचंद 'कमल'-- ० वर्णमाला में जैन दर्शन २१।३।२९५-३१६ ० नक्षत्र भोजन के मांस परक ___ शब्दों का अर्थ २२।३।०७-१७ ० गणित प्रतिभा के धनी मुनिश्री हनुमानमलजी २२।४।२५-३२ १००. मुनि जोशी- परम विदुषी मदालसा २१।३।३१७-२१ १०१. मुनि हनुमानमलजी- ० राजस्थानी कहावतें २२।२।२१-४४ १०२. रामजीसिंह- 0 मेरा जीवन दर्शन २०११-२१०१-०८ १०३. विनीता पाठक- ० श्रीमद्भागवदनुस्यूत भक्ति में भारतीय दर्शनों का समन्वय २१।३।३२३-२९ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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