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११. श्री वज्रधर प्रभु १२. श्री चन्द्रानन प्रभु १३. श्री चन्द्रबाहु प्रभु
१४. श्री भुजंग प्रभु १५. श्री ईश्वर प्रभु
विहरमाण विषयक काल और संख्या
के
बीस विहरमाण अर्थात् विद्यमान तीर्थंकरों का जन्म जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में सतरहवें तीर्थंकर श्री कुन्यु प्रभु के निर्वाण होने पश्चात् एक ही समय में हुआ था । बीसवें तीर्थंकर श्री मुनि सुव्रत प्रभु के निर्वाण होने के पश्चात् सबने एक ही समय में दीक्षा स्वीकार की । ये बीसों तीर्थंकर जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र की चौबसी के सातवें तीर्थंकर श्री उदय प्रभु के निर्वाण होने के पश्चात् एक साथ ही निर्वाण प्राप्त करेंगे । इन बीसों तीर्थंकरों का देहमान ५०० धनुष का तथा आयु ८४ लाख पूर्व की है । ये ८३ लाख पूर्व गृहस्थावस्था में रहे और एक लाख 5 संयम का पालन कर मुक्त होंगे । इन सब वर्तमान तीर्थंकरों में प्रत्येक के ८४ गणधर, प्रत्येक के दस लाख केवलज्ञानी और प्रत्येक के एक अरब साधु हैं तथा इतनी ही साध्वियां हैं। बीसों तीर्थंकरों के कुल दो करोड़ केवलज्ञानी, दो हजार करोड़ साधु तथा दो हजार करोड़ साध्वियां हैं । ये तीर्थंकर जब मुक्त होंगे तब दूसरी विजय में जो तीर्थंकर उत्पन्न हुए हैं वे दीक्षित होकर तीर्थंकर पद को प्राप्त करेंगे । यह क्रम अनादि काल से चलता आ रहा है और आगे भी चलता रहेगा ।
१६. श्री नेमिप्रभ प्रभु १७. श्री वीरसेन प्रभु
१८. श्री महाभद्र प्रभु
१९. श्री देवयश प्रभु २०. श्री अजितवीर्य प्रभु
तीर्थंकरों की न्यूनतम संख्या बीस है । इससे कम कभी नहीं होती अतः वर्तमानकाल के बीसों तीर्थंकरों के मुक्त हो जाने पर उसी समय दूसरे बीस तीर्थंकर हो जाते हैं । इस दृष्टि से जब एक तीर्थंकर गृहस्थावास में एक लाख पूर्व के हों तब दूसरे क्षेत्र में दूसरे तीर्थंकर का जन्म हो जाता है । जब वह एक लाख पूर्व के हों तब अन्य क्षेत्र में तीसरे तीर्थंकर का जन्म होता है । इस प्रकार एक लाख पूर्व के अन्तर से प्रत्येक तीर्थंकर के पीछे ८३ तीर्थंकर गृहस्थावस्था में होते हैं और सिर्फ चौरासीवें तीर्थंकर ही तीर्थंकर के रूप में विचरण करते हैं । जब चौरासीवें जाते हैं तब तेरासीवें क्रम वाले तीर्थंकर पद को प्राप्त कर लेते हैं क्षेत्र में एक तीर्थंकर का जन्म हो जाता है | इस प्रकार बीसों तीर्थंकरों में से प्रत्येक के पीछे ८३ तीर्थंकर होने से १६६० तीर्थंकर गृहस्थावस्था में होते हैं और २० तीर्थंकर के रूप में विचरण करते हैं अर्थात् एक समय में १६६० द्रव्य तीर्थंकर और २० भाव तीर्थंकर कुल १६८० तीर्थंकर होते हैं । यह पारम्परिक क्रम अतीत में चलता रहा है, वर्तमान में चल रहा है और भविष्य में चलता रहेगा ।
तीर्थंकर मुक्त हो
और किसी अन्य
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तुलसी प्रज्ञा
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