Book Title: Tulsi Prajna 1996 01
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 150
________________ गणित - प्रतिभा के धनीमुनिश्री हनुमानमलजी ( सरदारशहर ) मुनि श्रीचंद 'कमल' सत्य तक पहुंचने के अनेक साधन हैं। उनमें एक साधन है गणित । पदार्थ और जीवों की गति, संचालन, व्यवस्था आदि गणित के द्वारा जानी जाती हैं । ब्रह्माण्ड में ग्रहों पर उपग्रह ( स्पूतनीक आदि ) उतारना और वापस बुलाना बिना गणित के संभव नहीं है । रेल व वायुयानों की दूरी पार करने व परस्पर न टकराने सहायक होती है । वस्तु के क्रय-विक्रय में भी गणित का उपयोग होता है। प्रबंध में भी गणित होता है । जैन आगमों में एक गणितानुयोग है । गणित के तीन प्रकार हैं- अंक गणित, बीजगणित और रेखागणित । मुनिश्री हनुमानमलजी ( सरदारशहर ) के हस्तलिखित पत्रों में अंकगणित की अनेक विधाओं के प्रयोग हैं । उनमें से एक 'विक्रम संवत्सर में न्यूनाधिकमास', तुलसी प्रज्ञा के पूर्णांक ९७ में छप चुका है । यहां कुछ अन्य प्रयोगों की जानकारी दी जा रही है१. रूढ़ संख्या जो संख्या किसी अन्य संख्या से विभाजित न हो, उसे रूढ़ संख्या कहते हैं । मुनि हनुमानमल ने १ से २५०० तक की रूढ़ संख्या खोज निकाली हैं जो शतकों में निम्न प्रकार हैं १ से १०० तक की संख्याओं में २६ संख्याएं रूढ़ हैं - १, ३, ५, ७, ११, १३, १७, १९,२३,२९,३१,३७,४१,४३,४७, ५३, ५९,६१,६७,७१,७३,७९, ८३, ८९,९७ १०१ से २०० तक की संख्याओं में २२ संख्याएं रूढ़ हैं - १०१, १०३,१०७, १०९,११३,११७, १२७, १३१, १३७, १३९, १४९, १५१, १५७, १६३, १६७,१७३,१७९, १८१,१९१,१९३, १९७,१९९ २०१ से ३०० तक की संख्याओं में १६ संख्याएं रूढ़ हैं - २११,२२३, २२७, २२९,२३३,२३९,२४१,२५१,२५७, २६३, २६९,२७१, २७७, २८३,२८८, २९३ ३०१ से ४०० तक की संख्याओं में १६ संख्याएं रूढ़ हैं – ३०७,३११,३१३, ३१७,३३१,३३७, ३४७, ३४९, ३५३, ३५९, ३६७, ३७३, ३७९, ३८३,३८९, ३९७ ४०१ से ५०० तक की संख्याओं में १७ संख्याएं रूढ़ हैं – ४०१,४०९,४१९, ४२१,४३१,४३३,४३९,४४३,४४९, ४५७, ४६१, ४६३, ४६७, ४७९, ४८७,४९१,४९९ ५०१ से ६०० तक की संख्याओं में १५ संख्याएं रूढ़ हैं- ५०३, ५०९, ५२१, ५२३,५४१,५४७, ५५७, ५६३, ५६९, ५७१, ५७७,५८७,५९३,५९७,५९९ खण्ड २२, अंक ४ Jain Education International में गणित समय के For Private & Personal Use Only २५ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246