Book Title: Tulsi Prajna 1996 01
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 151
________________ ६०१ से ७०० तक की संख्याओं में १६ संख्याएं रूढ़ हैं-६०१,६०७,६१३, ६१७,६१९,६३१,६४१,६४३,६४७,६५३,६५९,६६१,६७३,६७७,६८३,६९१ ७०१ से ८०० तक की संख्याओं में १४ संख्याएं रूढ़ हैं-७०१,७०९,७१९, ७२७,७३३,७३९,७४३,७५१,७५७,७६१,७६९,७७३,७८७,७९७ ८०१ से ९०० तक की संख्याओं में १५ संख्याएं रूढ़ हैं-८०९,८११,८२१, ८२३,८२७,८२९,८३९,८५३,८५७,८५९,८६३,८७७,८८१,८८३,८८७ ९०१ से १००० तक की संख्याओं में १४ संख्याएं रूढ़ हैं-९०७,९११,९१९, ९२९, ९३७,९४१,९४७,९५३,९६७,९७१,९७७,९८३,९९१,९९७ १००१ से ११०० तक की संख्याओं में १६ संख्याएं रूढ़ हैं-१००९,१०१३, १०१९,१०२१,१०३१,१०३३,१०३९,१०४९,१०५१, १०६१, १०६३,१०६९,१०८७, १०९१,१०९३,१०९७ ११०१ से १२०० तक की संख्याओं में १२ संख्याएं रूढ़ हैं-११०३,११०९, १११७,११२३,११२९,११५१,११५३,११६३,११७१,११५१,११८७,११९३ १२०१ से १३०० तक की संख्याओं में १५ संख्याएं रूढ़ हैं.-१२०१,१२१३, १२१७,१२२३,१२२९,१२३१,१२३७, १२४९,१२५९,१२७७,१२७९, १२८३,१२८९, १२९१, १२९७ १३०१ से १४०० तक की संख्याओं में ११ संख्याएं रूढ़ हैं—१३०१,१३०३, १३०७,१३१७,१३१९,१३२१,१३२७,१३६१,१३६७,१३८१,१३९९ १४०१ से १५०० तक की संख्याओं में १८ संख्याएं रूढ़ हैं--१४०९,१४११, १४२३,१४२७,१४२९,१४३३, १४३९, १४५१,१४५३,१४५७, १४५९,१४७१,१४८१, १४८३,१४८७,१४८९,१४९३,१४९९ १५०१ से १६०० तक की संख्याओं में १२ संख्याएं रूढ़ हैं-१५११,१५१३, १५२३,१५३१,१५४३,१५४९,१५५३,१५५९,१५७१,१५७९,१५८३,१५९७ १६०१ से १७०० तक की संख्याओं में १४ संख्याएं रूढ़ हैं-१६०१,१६०७, १६०९,१६१३,१६१९,१६२१,१६२७, १६३७,१६५७,१५६३, १५६७,१५६९,१५९३, १५९७ १७०१ से १८०० तक की संख्याओं में ११ संख्याएं रूढ़ हैं-१७०९,१७२१, १७२३,१७४१,१७४७,१७५३,१७५९,१७७७,१७८३,१७८७,१७८९ १८०१ से १९०० तक की संख्याओं में १२ संख्याएं रूढ़ हैं--१८०१,१८११, १८२३,१८३१,१८४७,१८६१,१८६७,१८७१,१८७३,१८७७,१८७९,१८८९ १९०१ से २००० तक की संख्याओं में १३ संख्याएं रूढ़ हैं-१९०१,१९०७, १९१३,१९३१,१९३३,१९४९,१९५१,१९७३,१९७९,१९८७,१९९३,१९९७,१९९९ २००१ से २१०० तक की संख्याओं में १४ संख्याएं रूत हैं-२००३,२०११, २०१७,२०२७,२०२९,२०३९,२०५३,२०६३,२०६९, २०८१, २०८३,२०८७,२०८९, २०९९ २१०१ से २२०० तक की संख्याओं में १० संख्याएं रूढ़ हैं-२१११,२११३, तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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