Book Title: Tulsi Prajna 1996 01
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 143
________________ ....कुछ ने प्रेम में असफल होने पर बौद्ध-संघ में प्रवेश लिया था। कुण्डलकेशा" राजगृह के सेठ की लड़की थी, जिसने अपने प्रेमी से धोखा खाने पर सर्वप्रथम जैन भिक्षुणी संघ में तत्पश्चात् बौद्ध भिक्षुणी संघ में प्रवेश लिया था। पटाचारा ने, जो अपने नौकर के प्रेम में फंसकर भाग गई थी, माता-पिता, भाई आदि की मृत्यु के पश्चात् प्रव्रज्या ग्रहण की थी। ___अत्यधिक सुन्दरता अथवा अत्यधिक कुरूपता के कारण जिन स्त्रियों का विवाह नहीं हो पाता था, वे भिक्षुणी बनने का प्रयत्न करती थीं। सुन्दर कन्या को प्राप्त करने के लिए अनेक पुरुष इच्छुक होते थे, अतः लड़की के माता-पिता को इस परिस्थिति में यह निर्णय करना कठिन हो जाता था कि लड़की को किसे दें। विवश होकर अन्त में माता-पिता कन्या को भिक्षुणी बनने का आदेश दे देते थे। सुन्दरी उत्पलवर्णा श्रावस्ती के कोषाध्यक्ष की कन्या थी। उससे विवाह करने के लिए अनेक राजकुमार तथा श्रेष्ठि पुत्र लालायित थे ! अतः विवाह करने के लिए सबको संतुष्ट करने में अपने को असमर्थ पाकर उसके पिता ने उत्पलवर्णा को भिक्षुणी बनने का आदेश दिया था। अम्बपाली को अतिशय सुन्दरी होने के कारण ही नगर सुन्दरी बनना पड़ा था और अपने अन्तिम दिनों में बुद्ध को भोजन का निमन्त्रण देकर तथा अपने पुत्र विमल कौण्डन्य के उपदेश से प्रभावित होकर उसने भिक्षुणी संघ में प्रव्रज्या ग्रहण की थी। अभिरूपा नन्दा२५ कपिलवस्तु की ऐसी ही क्षत्रिय कन्या थी जिसको अपने रूप पर अत्यधिक गर्व था परन्तु विवाह के पूर्व ही भावी पति की मृत्यु हो जाने के कारण उसके माता-पिता ने उसे भिक्षुणी बनने हेतु उपदेश दिया था। ___ बहुत-सी स्त्रियां किसी भिक्षु या भिक्षुणी के उपदेश से प्रभावित होकर अथवा किसी प्रतीकात्मक घटना का आध्यात्मिक अर्थ लगाकर संघ में प्रवजित होती थीं। थेरी गाथा में एक अज्ञातनामा भिक्षुणी का ऐसा ही उल्लेख है। बौद्ध संघ में गणिकाएं भी प्रवेश लेती थीं। अड्ढकाशी२७ वाराणसी की गणिका थी, जिसने बुद्ध के उपदेश से प्रभावित होकर अन्य गणिकाओं द्वारा अवरोध उपस्थित किए जाने पर भी प्रवजित होने के अपने दृढ़ निश्चय का परित्याग नहीं किया था और दूती भेजकर भिक्षु-संघ से उपसम्पदा की अनुमति प्राप्त की थी ।२८ दासी पुत्रियों के भी संघ में प्रवेश करने के उल्लेख प्राप्त होते हैं। पूर्णिका श्रावस्ती के सेठ अनाथपिण्डक के घर की दासी-पुत्री थी। पूर्णिका की बौद्ध धर्म में श्रद्धा देखकर सेठ ने उसे दासत्व के भार से मुक्त कर दिया और सेठ की अनुमति लेकर वह संघ में प्रविष्ट हो गई। इसके अतिरिक्त कुछ नितान्त व्यक्तिगत कारण भी होते थे, जिनके फलस्वरूप प्रव्रज्या ग्रहण की जाती थी। सोखा ने अपने पुत्र एवं बहुओं द्वारा निरादर होने पर गृह-त्याग कर बौद्ध-संघ में शरण ली थी। ऋषिदाषी" को अपने पति के घर से निकाल दिया गया था, जिससे विवश होकर उसने बौद्ध-संघ में प्रवेश लिया था। मुक्ता ने कुबड़े पति के कारण गुह-त्याग किया था क्योंकि पति तुलसी प्रज्ञा. १८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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