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१२. परलोकप्रतिबद्धा पारलौकिक सुखों की प्राप्ति के लिए ली जाने वाली ।
१३. उभयतः प्रतिबद्धा - दोनों के सुखों की प्राप्ति के लिए ली जाने वाली । १४. अप्रतिबद्धा - इहलोक आदि के प्रतिबंध से रहित ।
१५. पुरतः प्रतिबद्धा - शिष्य, आहार आदि की कामना से ली जाने वाली । १६. तोदयित्वा - कष्ट देकर दी जाने वाली ।
१७. प्लावयित्वा — दूसरे स्थान में ले जाकर दी जाने वाली ।
१८. वाचयित्वा - बातचीत करके दी जाने वाली ।
१९. स्निग्ध - सुमधुर भोजन करवाकर दी जाने वाली ।
२०. अवपात प्रव्रज्या - गुरु सेवा से प्राप्त की जाने वाली । २१. आख्यात प्रव्रज्या--- उपदेश से प्राप्त |
२२. संगर प्रव्रज्या - परस्पर प्रतिबद्ध होकर ली जाने वाली ।
२३. विहगगति प्रव्रज्या - परिवार से विमुक्त होकर देशांतर में जाकर ली जाने वाली ।
इन सामान्य कारणों के अतिरिक्त भी कुछ ऐसे कारण थे जिनसे प्रव्रज्या ग्रहण की जाती थी । सामान्यतया पति की मृत्यु अथवा उसके प्रव्रज्या ग्रहण कर लेने पर पत्नियां भी प्रव्रजित हो जाती थीं ।
उत्तराध्ययन सूत्र में राजीमती' और वाशिष्ठी के उदाहरण द्रष्टव्य हैं । राजीती ने यह समाचार पाकर कि उसके भावी पति भिक्षु हो गए हैं, भिक्षुणी बनने का निश्चय कर लिया । वाशिष्ठी ने भी अपने पति और पुत्रों को प्रव्रज्या ग्रहण करते हुए देखकर संसार का त्याग किया था। कुछ नारियां पति की मृत्यु या पति की हत्या कर दिये जाने के पश्चात् प्रव्रज्या ग्रहण करती थीं क्योंकि उस सामाजिक परिवेश में उन्हें उतनी सुरक्षा नहीं प्राप्त हो पाती थी, जितनी अपेक्षित थी। यही कारण था कि गर्भावस्था में भी वे संघ - प्रवेश हेतु प्रार्थना करती थी । मदनरेखा के पति को उसके सहोदर भ्राता ने मार डाला । उस समय वह गर्भवती थी परन्तु भयभीत होकर जंगल में भाग गई और मिथिला में जाकार संन्यास ग्रहण कर लिया। इसी प्रकार का उदाहरण यशभद्रा' का है, जिसके पति के ऊपर उसके ज्येष्ठ भ्राता ने आक्रमण किया था । वह भी भयभीत होकर श्रावस्ती के जंगल में भाग गई और वहीं उसने संघ में दीक्षा ग्रहण की। बाद में उसका पुत्र क्षुल्लककुमार उत्पन्न हुआ, जो भिक्षु बना । करकण्डु जो रानी पद्मावती का पुत्र था, पद्मावती के प्रव्रज्या ग्रहण करने के पश्चात् पैदा हुआ था । जैन अनुश्रुति के अनुसार बाद में हुआ 1
वह कलिंग का राजा
इसी प्रकार भाई के साथ बहनों के प्रव्रज्या ग्रहण करने का उल्लेख प्राप्त होता है। भिक्षुणी उत्तरा ने जो आचार्य शिवभूति की बहन थी, भाई का अनुसरण करते हुए प्रव्रज्या ग्रहण की थी । बाल विधवा धनश्री ' ने भी अपने भाई के साथ ही प्रव्रज्या ग्रहण की थी । भिक्षु स्थूलभद्र की सात बहनें थी - यक्षा, यक्षदता, भूता,
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तुलसी प्रचा
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