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विमुख हो रहे युवक-युवतियों के लिए यह पाथेय निस्संदेह कल्याणकारक है और शील मंजूषा के रूप में उन्हें यह आर्यिकाजी का उदात्त अवदान है। ५. खामोश लम्हे-सुषमा बद, संपादक-तेजराज जैन, ३-४-३०८/७ परवरिश बाग, लिंगमपल्ली, कांचीगुड़ा, हैदराबाद-५०००२७, प्रथम संस्करण-१९९७, मूल्य-५०/रुपये ।
खामोश लम्हे, सुषमा बैद की कविताओं का संग्रह है। संपादक के शब्दों में यह कृति संयोग-वियोग के बीच व्यतीत भावों की एक सुन्दर और सुखद यात्रा है जिसे कवि ने मधुर अभिव्यक्ति प्रदान कर दी है । 'भावांकुर' के पश्चात् दो वर्ष के अन्तराल में प्रकाशित सुषमाजी का यह दूसरा कविता संग्रह है। वे अपने आत्मकथन में कहती हैं कि एक गृहिणी अपनी पारिवारिक जिम्मेवारियों को पूर्णतया निभाते हुए भी कछ समय सजनात्मक और रचनात्मक कार्यों के लिए निकाल सकती है।
सचमुच सुषमाजी ने भावांकुर के भक्ति गीतों से आगे बढ़कर खामोश लम्हों में कुछ चिन्तन-मनन किया है और उनकी कवि-मति का सद्प्रकाश उजागर हआ है
कवि-मति की बन सखी-सहेली, हर पल रहती है आसपास ।
महकाती मन के मंदिर को, फैलाती 'सुषमा' सद् प्रकाश ।।
महामहिम राष्ट्रपति डॉ. शंकरदयाल शर्मा के शब्दों में वह जितना सुन्दर लिखती है, उससे बेहतर गाती हैं और एक समीक्षक के शब्दों में भी उनकी प्रवत्ति गीत्यात्मक है किन्तु अभी उनके पास शब्द भण्डार की कमी है इसलिए उनका कविमन सुख-दु:ख के गहन अनुभव पर चुपके-चुपके रोता है और आहिस्ता-आहिस्ता दिल से दिल मिलाने की बात करता है
गम अश्रुओं की निर्भरणी में, दर्दे-दिल वह घोता है ।
जब लगती दिल को ठेस 'सुषमा', मन काव्य-स्रजन में खोता है ।।
आशा है, उनके भावांकर और फूटेंगे और ख़ामोश लम्हे उन्हें वाचाल बनाते रहेंगे। ६. सपर्या -महाश्रमण मुदितकुमार, प्रकाशक-सुरेन्द्र कुमार सुखाणी, सुखाणी मोहल्ला, बीकानेर, प्रथम संस्करण---१९९६ ।
प्रस्तुत लघु कलेवर काव्य संग्रह में महाश्रमण मुदितकुमार की १७ कविताएं हैं। ये कविताएं लोकप्रिय लयबद्ध गीतों के तर्ज पर लिखी गई हैं किन्तु स्वाभाविक गीतों की तरह गेय बन गई हैं । कुछ उदाहरण देखिए
१. जिसका जीवन सद्गुण-भाण्डागार है।
महापुरुष कहलाने का उस मानव को अधिकार है। नमन उसको हमारा बारम्बार है। २. संन्यासी का वेश लिया पर ग्रन्थि-विमोचन किया नहीं ।
औरों को उपदेश दिया पर स्वयं आचरण किया नहीं। आदर्शों पर चलना प्रभु से प्यार है ॥
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तुलसी प्रज्ञा
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