________________
३. सत्संगत की महिमा अपरम्पार है।
हर मानव के लिए खुले ये संतजनों के द्वार हैं।
सन्तपुरुष का हर प्राणी से प्यार है । ४. औरों के कहने से कोई, बनता नहीं महान् ।
मैं कैसा हूं इसका सच्चा, व्यक्ति स्वयं प्रमाण ॥ मुझे तो करना निज कल्याण ।
मुझे तो करना जन कल्याण ॥ ५. श्रेष्ठ बालक वह सुगुण का जो अमित भण्डार है ।
मस्त अपने आपमें जिसका पठन से प्यार है ।।
ज्ञान के अनुरूप जिसके, उच्च स्वच्छ विचार हैं । इन्हें देखकर लगता है, महाश्रमण काव्य-स्रजन पथ के पथिक बनेंगे।
-परमेश्वर सोलंकी
खण्ड २२, बंक ४
३३५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org