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की गति के अध्ययन में निम्न स्थितियां प्राप्त हो सकती हैं
(क) एक दिन कि चन्द्रमा की यात्रा में एक योग तारा मिल जाए जो कि नक्षत्र चक्र में लिया जा सके। ऐसे नक्षत्र ३० मुहूर्त के माने गए क्योंकि एक दिन ( ३० मुहूर्त ) में कम से कम एक तारा चन्द्रमा के मार्ग का परिचायक पाया गया । इस विभाग का नाम इसी तारे के नाम से होगा। प्राचीन काल से ऐसी ही परम्परा रही । अथवा
(ख) यह भी संभव है कि चन्द्रमा की अल्पतम गति से भी दिन में ही एक योगतारा प्राप्त हो जाय । यह विभाग गया क्योंकि आधे दिन में ही इस नक्षत्र का परिचायक योग
एक
दिन से कम आधा १५ मुहूर्त का माना तारा मिल गया ।
अथवा
(ग) यह भी संभव है कि चंद्रमा की अधिकतम गति से भी एक दिन तक योगतारा प्राप्त न हो। ऐसी स्थिति में डेढ़ दिन में तो एक योगतारा अवश्य ही प्राप्त हो जाता है । इस नक्षत्र विभाग को ४५ मुहूर्त का (यानी डेढ़ दिन का ) कहा जाता है ।
इस प्रकार तीन प्रकार के नक्षत्र हुए। इन सभी के मुहूर्ती का जोड़ चंद्रमा का नक्षत्रमास बनता है । इससे अभिजित् नक्षत्र सबसे अलग ४° के लगभग है । इस प्रकार प्राचीनकाल में नक्षत्रों के विषय विभाजन रहे और बाद में सुविधा के लिये सभी विभाग सम कर दिये गये ।
राशियों के विभाग
क्या चंद्रमा की कक्षा में नक्षत्रों के विभाजन की तरह सूर्य की कक्षा के सम्बद्ध राशियों के विषम विभाग भी संभव है या नहीं ? यहां ध्यान देने योग्य है
(अ) सूर्य की गति में परिवर्तन बहुत ही कम होता है, जबकि चंद्रमा की गति में परिवर्तन बहुत अधिक है। सूर्य की गति समरूप मानी जा सकती है ।
( आ ) सूर्य की एक मास की यात्रा में उससे १८० पर एक राशि आकृति (जिसकी पहचान सरलता से की जा सकती है ) ३० के भीतर अवश्य ही प्राप्त हो जाती है ।
(इ) इन प्रत्येक विभागों में क्रांतिवृत की परिधि पर या इसके पास के परिचित तारे प्राप्त हो ही जाते हैं। यदि आप राशि चक्र के चित्र देखें तो सहज ही यह जान सकेंगे कि प्रत्येक राशि ३० के अन्दर ही आ
जाती है ।
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चंद्रमा की कक्षा ५ तक फैली हुई है और इसके सूक्ष्म परिधि है और इसकी गति समरूप है । इसके लिए लिया गया जो कि प्रयोग में पर्याप्त सिद्ध हुआ । इस प्रकार सभी राशियां ३०° की ही बनीं। अतः राशियों के विषम विभाग प्रयोग में अनिवार्य रूपेण प्राप्त नहीं हुए । लगभग ३० दिन की इकाई (मास) से ३०° के अंकन ही सहज स्वीकृत हो गए । अतः प्राचीन काल में राशियों के विषम विभाग संभवतः कभी प्रयोग में नहीं आए । इस प्रकार सिद्धांत परिप्रेक्ष्य में भी ब्रिटेन ज्योतिषज्ञों के अक्षेप आधारहीन हैं भले ही वे फलित परिप्रेक्ष्य में किए गए हों ।
विपरीत सूर्य की कक्षा एक
१ मास का इकाई समय
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--डॉ० शक्तिधर शर्मा प्रोफेसर (भौतिकी).
पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला ( पंजाब )
तुलसी प्रशा
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