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नाथ को सुनाये। यदि स्वामी नेमिनाथ समाधि को लगाये हुए हों तो तुम एकदम उनको यह समाचार मत सुनाना क्योंकि ऐसा करने से उनकी समाधि भंग हो जाएगी इसलिए कुछ समय ठहरकर प्रतीक्षा करना और फिर कहना तुम जो पशु-पक्षियों की पीड़ा को भी नहीं सहन कर सकते तब तुमने अपनी जीवन संगिनी राजीमति का परित्याग कैसे कर दिया ? क्या तुम इस तरह बीच में छोड़ी गई प्रिया को पुनः स्वीकार नहीं कर सकते ? जनमेघदूत में कवि की धार्मिक भावना का प्राबल्य है। मन्दाक्रान्ता छन्दोबद्ध यह मनोरम रचना मानव जाति के लिए भी शुभ सन्देश संवाहक
जैन साध्वी राजीमति द्वारा मेघ को दूत बनाने तथा उसके माध्यम से अपने स्वामी के पास विरह-संदेश भेजने के कारण ही इसका नाम जैन मेघदूत पड़ा है। इसमें भावव्यंजना एवं पाण्डित्य का अपूर्व समन्वय बन पड़ा है। यह समस्या पूर्तात्मक न होकर एक मौलिक काव्यकृति है।
---डॉ. नीलम जैन द्वारा श्री यू०के० जैन
सैण्ट्रल बैंक ऑफ इण्डिया कोर्ट रोड़ सहारनपुर-२४७००१
पण २२, अंक ४
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