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शैव जैन तीर्थः बटेश्वर
सन्दीप कुमार चतुर्वेदी
जैन महापुराण और हरिवंशपुराण के अनुसार प्रारम्भ में सम्राट् ऋषभदेव ने जनपदों की स्थापना की थी, उनमें एक शूरसेन जनपद था। कालान्तर में शत्रुघ्न के प्रतापी पुत्र शूरसेन के कारण यह जनपद और भी प्रसिद्ध हो गया। कृष्ण साहित्य में भी चौरासी वनों का उल्लेख आया है । उनमें एक “अग्रवन" था और जो दूर-दूर तक यमुना के तट पर फैला हुआ था। इसके एक और मथुरा नगरी थी और दूसरी ओर शौरीपुर । महा भारत काल में इन दोनों पर यदुवंशियों का अधिकार था।
"वटेश्वर" मुख्यतया शैव तीर्थ है जो यमुना किनारे टीलों पर बसा हुआ है । यह आगरा जिला केन्द्र से ७० किलोमीटर दूर तहसील बाह में स्थित है। यहां बटेश्वर नाथ महादेव का प्रसिद्ध मन्दिर है। इस स्थान का महत्व भदावर नरेश बदनसिंह के समय से अधिक हो गया जो १७ वीं शताब्दी के मध्य (१६४६) में यहां निवास करते थे। उन्होंने बटेश्वर के नाम से महादेव जी के मंदिर का नूतन निर्माण कराया। शिवलिंग के अतिरिक्त इस मंदिर में कार्तिकेय और गौरा पार्वती की दर्शनीय प्रतिमायें हैं और यमुना के किनारे-किनारे कई किलोमीटर लम्बा पक्का घाट बना हुआ है । घाट पर कतार बढ शिवजी के एक सौ एक मंदिर है। ठाकुर बिहार मंदिर में कृष्ण की मूर्ति है, जिसे राजा भदावर के दीवान बख्त सिंह ने १६७३ ई० में बनवाया था। निकुंज बिहारी का मंदिर राजा बदनसिंह ने १६८२ में बनवाया।
प्रमुख मंदिर महाराज बटेश्वरनाथ का है। इसके अन्दर स्थापित शिवलिंग दो हजार वर्ष प्राचीन माना जाता है । यह शिवलिंग लाल पत्थर का बना है, शिवलिंग के चारों ओर का घेरा पीतल का है, जो कि अष्टकोणीय है। इसकी मोटाई लगभग ३ इंच है, पास में पीतल के शेषनाग स्थापित्त है तथा समीप संगमरमर का श्वेत वर्णी नन्दी बैल की लम्बाई ३८ से०मी० और चौड़ाई २२ से०मी० है। शेषनाग की लम्बाई १.२० मी० है तथा अन्त में तीन बैल है। मंदिर की पश्चिमी तरफ बरगद का वृक्ष है । यहां का दृश्य बड़ा ही मनोरम है ।
यहां पर १०८ मंदिरों में एक पाटलेश्वर मंदिर है जिसे पानीपत की तीसरी लड़ाई के बाद मराठा अधिपति ने युद्ध में शहीद लोगों की याद में एक स्मारक के रूप में बनवाया था। यह भी एक शिव मंदिर के रूप में है। जिसके एक तरफ ९ मीटर ऊंचा स्तम्भ है जिसमें एक हजार छोटे-छोटे उभार पीप रखने के लिए है इसी वजह से इसका नाम सहस्रदीप स्तम्भ है।
खण्ड २२, अंक ४
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