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समीक्षा:
वाल्मीकि रामायण की ऊर्मिला
कुमारी ममता
आदिकवि वाल्मीकि की लेखनी से जिस अनुपम काव्य की सर्जना हुई है, वह संपूर्ण संस्कृत वाङ्मय में अनन्य और अप्रतिम है । सचमुच इस काव्य की रचना उत्कृष्ट है। यहां सब कुछ सौन्दर्य एवं प्रेम में पगा हुआ है । यह एक अनूठी कृति है, जिसमें सभी एक लक्ष्य की ओर गतिमान् हैं । उस लक्ष्य में सत्य, शिव और सुन्दर का पर्यवसान है, तथा मानवता की सार्थकता है।
पात्रों के चरित्र-चित्रण में कवि सिद्धहस्त हैं। राम-सीता, रावण, कैकेयी, भरत इत्यादि प्रमुख पात्र शबरी, मन्थरा, शूर्पनखा, बाली, सुग्रीव आदि गौण पात्र एवम् वानर, भालु, गिद्ध आदि अन्य पात्र - इस तरह तीन कोटि में अपने पात्रों को विभाजित कर उनका संयोजन एवं उपस्थापन कवि ने किया है। कवि ने इस काव्य जगत् के पात्रों का न केवल बाह्य हाव-भाव अपितु उनके राग-द्वेष, हर्ष-विषाद, प्रसन्नता-क्रोध, दयालुता, उदारता तथा सहानुभूति आदि विविध मनोवृत्तियों के चित्रण में भी अपनी चातुरी दिखाई है ।
यही नहीं, रामायण के महिला पात्रों में परस्पर विरोधी प्रवत्तियों के पात्रों का भी हृदयग्राही वर्णन है । जानकी और शूर्पणखा, कौशल्या और कैकयी-ऐसे ही पात्र हैं। अहल्या, अनसूया, शबरी, स्वयंप्रभा, तारा, मन्दोदरी आदि आपस में बहुत कुछ साम्य रखती हैं । सुमित्रा, त्रिजटा आदि का चरित्र दूसरे प्रकार का है।
वस्तुतः रामायण का केन्द्र सुन्दर काण्ड है और उसमें त्रिजटा का स्वप्न उसका सौन्दर्य है किन्तु एक कमी बहुत खलती है । वह है ऊर्मिला को विवाहोपरांत सर्वथा भुला दिया जाना । क्रोञ्च दम्पती के वियोग को देखकर जो कवि करुणा से भर जाता है वही वाल्मीकि ऊर्मिला को सर्वथा-सर्वदा भूल बैठा
"मा निषादप्रतिष्ठास्त्वमगमः शाश्वतीः समाः ।
यत् क्रौञ्चमिथुनादेकमवधीः काममोहितम् ॥'
उदारचेता और सहृदय कवि के हृदय का करुण उद्गार पतिवियुक्ता ऊर्मिला के लिये क्यों नहीं रोता ? क्यों अनस्पर्श रह जाता है ऊर्मिला का चरित्र, महर्षि वाल्मीकि की लेखनी से । यह प्रश्न हमारे मानस को झकझोरता है । कालिदास का यक्ष प्रमादवश कुबेर के शाप से शापित हो, एक वर्ष के लिए अपनी पत्नी से वियुक्त होकर विरह के आठ-आठ आंसू बहाता हुआ दिखाई पड़ता है। उसकी विरह दशा कालिदास
खण्ड २२, अंक ४
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