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'लोक में किञ्चित् सारूप्य के आधार पर एक वस्तु की दूसरी वस्तु के साथ तुलना करना ही उपमालङ्कार है।" दण्डी के सादृश्य के स्थान पर अग्निपुराण में 'सारूप्य' शब्द प्रयुक्त हुआ है। इस प्रकार दो वस्तुओं में रूपगत समानता 'अग्निपुराण' में आवश्यक मानी गयी है। १०. मम्मट
आचार्य मम्मट संस्कृत काव्यशास्त्र के गौरवपूर्ण स्तम्भ हैं। उनके ग्रन्थ 'काव्यप्रकाश' का अलङ्कार साहित्य में विशिष्ट स्थान है। मम्मट ने काव्यप्रकाश के दसवें उल्लास में अर्थालङ्कारों का विवेचन किया है। सर्वप्रथम उपमालङ्कार का लक्षण बताते हुए उन्होंने लिखा है कि 'उपमान तथा उपमेय का भेद होने पर उपमान और उपमेय दोनों के गुण, क्रिया आदि धर्म की समानता का वर्णन उपमालङ्कार
मम्मट के अनुसार उपमा में अन्य अलङ्कारों की अपेक्षा अधिक सुकुमारता है और यह रूपक, उत्प्रेक्षा इत्यादि साधर्म्य मूलक अलंकारों का मूल है। इस प्रकार उपमान तथा उपमेय का समान धर्म के साथ सम्बन्ध वर्णन ही उपमालङ्कार है। यद्यपि उपमा की परिभाषा में उपमान और उपमेय का ग्रहण नहीं है तथापि 'साधर्म्य' शब्द के द्वारा उनका आक्षेप हो जाता है। काव्यप्रकाश के अनेक टीकाकार इस 'साधर्म्य' को सादृश्य से भिन्न मानते हैं। मम्मट के अनुसार जहां भिन्न-भिन्न उपमान और उपमेय के साधर्म्य का चमत्कारजन्य वर्णन होता है वहां उपमालङ्कार माना जाता है । ११. राजानक रूय्यक
आचार्य मम्मट के पश्चात् राजानक रूय्यक का 'अलङ्कारसर्वस्व' नामक ग्रन्थ उपलब्ध होता है। यह अलङ्कारशास्त्र पर लिखित एक प्रामाणिक ग्रंथ है जिसमें अलङ्कारों का प्रौढ़ एवं वैज्ञानिक विवेचन है। रूय्यक ने 'अलङ्कारसर्वस्व' में ७५ अर्थालङ्कारों का वर्णन किया है जिसमें सर्वप्रथम उपमा को परिभाषित करते हुए लिखा है-'उपमान और उपमेय का समानधर्म के साथ इस प्रकार से संबंध होना जिसमें भेद और अभेद में साम्य हो उपमालङ्कार कहलाता है ।" रुय्यक ने इसे स्पष्ट करते हुए लिखा है कि साधर्म्य में तीन भेद होते हैं-पहला वह जिसमें भेद प्रधान होता है जैसे-व्यतिरेक आदि में। दूसरा वह जिसमें अभेद प्रधान होता है जैसेरूपक आदि में। तीसरा वह जिसमें भेद और अभेद दोनों ही समान होते हैं जैसे-उपमा में। रुय्यक भी उपमा को समस्त अर्थालङ्कारों का मूल स्वीकार करते हैं। १२. जयदेव
जयदेव ने 'चन्द्रालोक' नामक अत्यंत लोकप्रिय तथा महत्त्वपूर्ण काव्यशास्त्रीय ग्रंथ की रचना की। यह ग्रंथ दस मयूखों में विभक्त है। इसके पांचवें मयूख में इन्होंने अलङ्कारों का विस्तृत निरूपण करते हुए उपमा को इस प्रकार परिभाषित किया
__ तुलसी प्रज्ञा
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