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के काव्य का उदाहरण है। कभी-कभी इस रस शब्द का प्रयोग विषय अथवा अभिव्यक्तिकरण की मधुरता के अर्थ में भी होता है। परन्तु ऊपर मानव-हृदय के जिन भावों को काव्य का वास्तविक स्वरूप माना गया है उनसे हम रस को नितान्त भिन्न भी नहीं मान सकते हैं।
.. पाश्चात्य विद्वानों ने काव्य की निम्नलिखित परिभाषाएं दी हैं-वेबस्टर अपने प्रसिद्ध अंग्रेजी कोष में काव्य की व्याख्या यों करते हैं
"उपयुक्त भाषा में सुन्दर या उच्च विचार, कल्पना और भाव को प्रकट करना काव्य है। भाषा लयात्मक साधारणतया छन्दोबद्ध होनी चाहिये। उसमें यह विशेषता होनी चाहिये कि वह पाठकों के हृदय में भाव और कल्पना का उद्रेक कर सके ।
चेम्बर्स कहते हैं- “मधुर शब्दों में भाव-प्रसूत और कल्पना-प्रसूत विचारों को प्रकट करने की कला को काव्य कहते हैं।"५
___ एच० डल्ब्यू फलर और एफ० जी० फॉलर ने संक्षिप्त आक्सफोर्ड कोष में काव्य की व्याख्या इस प्रकार की है.---
“उत्तम विचार या भाव को छन्दोबद्ध रूप में उत्तम रूप से प्रकट करना काव्य कहलाता है।"
ये तो कोषकारों की परिभाषाएं हुईं। अब कुछ पाश्चात्य कवियों और आलोचकों द्वारा की गई परिभाषाओं का संकेत किया जाता है।
प्रोफेसर शर्य अपने 'आस्पेक्टस आफ पोइट्री' नामक ग्रन्थ में लिखते हैं-सहृदयों में जीवन की झांकी जिन उच्च विचारों और भव्य भावों को जागृत करती है उनको सुन्दर स्वरूप और सरस भाषा में व्यक्त करना ही काव्य है। गद्य या पद्य किसी में भी इसकी रचना हो सकती है। शेली कहते हैं- "कल्पना को प्रकट करना सामान्य रूप से काव्य कहलाता है ।"" शेक्सपियर भी काव्य में शेली को तरह कल्पना की प्रधानता मानते हैं। जॉनसन कहते हैं - "काव्य छन्दोबद्ध रचना है और यह वह कला है जो कल्पना से बुद्धि की सहायता से आनन्द को सत्य से मिलाती है।"
प्रसिद्ध समालोचक ड्राइडन कहते हैं—“आनन्दप्रद रीति से शिक्षा देना काव्य का साधारण उद्देश्य है । दर्शन शास्त्र भी शिक्षा देने का काम करता है। पर वह यह काम उपदेश के बल पर करता है जो प्रिय नहीं लगता।"
प्रसिद्ध कवि वर्डस्वर्थ ने काव्य की परिभाषा यों दी है"काव्य शान्ति के समय में स्मरण किये हुये प्रबल मनोवेगों का स्वच्छन्द प्रवाह
इन परिभाषाओं की सूची में वृद्धि की जा सकती है, पर उससे काव्य की परिभाषा समझने में कोई अतिरिक्त लाभ होगा, ऐसी आशा नहीं है। ऊपर जो परिभाषाएं उद्धृत की गई हैं, उनसे "काव्य क्या है ?" यह चाहे स्पष्ट नहीं हुआ हो, पर यह अवश्य स्पष्ट हो गया कि काव्य को किसी परिभाषा के बन्धन में बांधना बहुत कठिन है। सबने अपने दृष्टिकोण से काव्य के स्वप्न को देखा है। कोषकार,
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तुलसी प्रज्ञा
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