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माधवी एवं सर्प, वृश्चिक, छिपकली तथा मृग जैसे जीव-जन्तुओं का शरीर पर या समीप ही विचरण करते हुए और पार्श्वनाथ की मूर्तियों में शंबर (कमठ या मेघमाली) के विस्तृत उपसर्गों के अंकन स्पष्टतः महापुराण के विवरणों से निर्दिष्ट
महापुराण में २४ तीर्थंकरों में ऋषभनाथ को सर्वाधिक महत्त्व दिया गया, जिनके बाद पार्श्वनाथ और तत्पश्चात् नेमिनाथ और महावीर का विस्तारपूर्वक उल्लेख हुआ है। अन्य तीर्थंकरों की चर्चा संक्षेप में की गयी है। तीर्थंकरों के सन्दर्भ में मुख्यतः पंचकल्याणकों (च्यवन, जन्म दीक्षा, कैवल्य और निर्वाण) एवं ऋषभनाथ, पार्श्वनाथ, नेमिनाथ और महावीर के सन्दर्भ में उनके जीवन की कुछ विशिष्ट घटनाओं का भी विस्तारपूर्वक उल्लेख हुआ है।
उत्तरभारत में ऋषभनाथ की सर्वाधिक स्वतंत्र मूर्तियां बनीं। ऋषभनाथ के बाद क्रमशः पार्श्वनाथ, महावीर और नेमिनाथ की मूर्तियां उकेरी गयीं किंतु दक्षिण भारत में पार्श्वनाथ की सर्वाधिक मूर्तियां उत्कीर्ण की गयीं। एलोरा जैसे पुरास्थल में पार्श्वनाथ की कुल ३१ मूर्तियां मिली हैं, जिनमें ९ ध्यानमुद्रा में शेष कायोत्सर्ग मुद्रा में हैं ।१ दक्षिणभारत में पार्श्वनाथ की तुलना में ऋषभनाथ की मूर्तियां नगण्य हैं। ऋषभनाथ से संबंधित, स्वतंत्र आदिपुराण की रचना की पृष्ठभूमि में एलोरा में ऋषभनाथ की केवल पांच मूर्तियों का मिलना सर्वथा आश्चर्यजनक है। दूसरी ओर पार्श्वनाथ की एलोरा में ३० से अधिक स्वतंत्र मूर्तियां देखी जा सकती हैं।१२ एलोरा की गुफा ३३ की पार्श्वनाथ की मूर्ति (११वीं शती ई०) में बायीं ओर मेघमाली के उपसर्ग भी चित्रित हैं । दाहिने पार्श्व में छत्रधारिणी पद्मावती है । १३
एलोरा में पार्श्वनाथ के बाद महावीर की ही सर्वाधिक मूर्तियां हैं, जिनके कुल १२ उदाहरण मिले हैं। एलोरा की जैन गुफाओं (३०,३१,३२,३३,३४) में भी महावीर की कई मूर्तियां (९वीं-११वीं शती ई०) हैं। इनमें महावीर ध्यानमुद्रा में विराजमान हैं और उनके यक्ष-यक्षी के रूप में गजारूढ़ सर्वानुभूति एवं सिंहवाहना अम्बिका निरूपित है। पार्श्वनाथ, महावीर और ऋषभनाथ के अतिरिक्त अजितनाथ, सुपार्श्वनाथ और नेमिनाथ की भी एक से तीन मूर्तियां देखी जा सकती हैं। एलोरा की तीर्थंकर मूर्तियो में केवल पार्श्वनाथ के साथ शंबर द्वारा उपस्थित किये गये विभिन्न उपसर्गों का विस्तृत अंकन मिलता है। महावीर के साथ पारम्परिक यक्ष-यक्षी मातंग व सिद्धायिका के स्थान पर नेमिनाथ के यक्ष-यक्षी कुबेर (या सर्वानुभूति) और अंबिका निरूपित हैं, जो स्पष्टतः पश्चिम भारत के श्वेताम्बर मूर्ति परम्परा का प्रभाव है जहां लगभग सभी तीर्थंकरों के साथ यक्ष-यक्षों के रूप में कुबेर और अंबिका ही आमूर्तित हैं।५
एलोरा एवं ९वीं-१०वीं शती ई० की दिगम्बर-परम्परा की अन्यत्र की तीथंकर मूर्तियों में महापुराण के उल्लेख के अनुरूप सिंहासन, प्रभामण्डल, त्रिछत्र, चैत्यवृक्ष (या अशोकवृक्ष), देवदुन्दुभि, सुरपुष्पवृष्टि, दिव्यध्वनि, चामरधारी सेवक जैसे अष्ट प्रातिहार्यों को दिखाया गया है। आदिपुराण में तीर्थंकर मूर्तियों में दिखाये जाने वाले अष्ट-प्रातिहार्यों का सर्वाधिक विस्तारपूर्वक उल्लेख हुआ है। एलोरा की पार्श्वनाथ
खण्ड २२, अंक ४
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