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मिली है ।
एवं बाहुबली के युद्ध और बाहुबली जो एलोरा की जैन गुफाओं की
सर्प एवं मृग आदि
आदिपुराण में ऋषभनाथ के पुत्रों की कठिन तपश्चर्या का विस्तृत उल्लेख बाहुबली मूर्तियों के निरूपण की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। एलोरा में पार्श्वनाथ के बाद सर्वाधिक स्वतंत्र मूर्तियां (लगभग २० ) बाहुबली की हीं बनीं जिनमें आदिपुराण के विवरण के अनुरूप बाहुबली कायोत्सर्ग में तपश्चर्या में तल्लीन और शरीर से लिपटी लता - वल्लरियों एवं समीप ही निश्चिन्त भाव से विचरण करते वन्य जीव-जन्तुओं की आकृतियों सहित दिखाया गया है, जो बाहुबली की गहन साधना के सूचक हैं | आदिपुराण में समवसरण की परिकल्पना के समान ही गज एवं सिंह तथा मयूर - सर्प जैसे परस्पर शत्रुभाव वाले वन्य जीव-जन्तु को बाहुबली के समीप निश्चिन्त भाव से स्थित बताया गया है । सिंहनी द्वारा महिष के शिशु को अपने शिशु के समान स्तनपान कराने का उल्लेख भी ध्यातव्य है ।" ये संदर्भ साधना और त्यागमय आध्यात्मिक वातावरण में पारस्परिक वैरभाव की समाप्ति और समभाव की स्थिति के सहज वातावरण को उपस्थित करते हैं। आदिपुराण में बाहुबली के पाश्र्व में उनकी बहनों ब्राह्मी एवं सुन्दरी के स्थान पर दो विद्याधरियों का उल्लेख हुआ है, जिन्होंने साधनारत बाहुबली के शरीर से लिपटी माधवी को हटाया था ।" आदिपुराण के उपर्युक्त वर्णन की पृष्ठभूमि में ही एलोरा की बाहुबली मूर्तियों में दोनों पार्श्वो में दो विद्याधरियों को बाहुबली के शरीर से लिपटी लतावल्लरियों को हटाते हुएदिखाया गया है । आदिपुराण की इस परम्परा का पालन देवगढ़, खजुराहो, बिल्हरी तथा कई अन्य दिगम्बर स्थलों की १०वीं से १२वीं शती ई० की बाहुबली मूर्तियों में भी हुआ
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एलोरा की पार्श्वनाथ एवं बाहुबली मूर्तियों में क्रमश: पद्मावती एवं विद्याधरियों के निरूपण में वस्त्राभूषणों एवं केशसज्जा का वैविध्य ध्यातव्य है साथ ही ifant यक्षी, आलिंगनबद्ध स्त्री-पुरुष युगलों एवं चामरधारी सेवकों के अंकन में भी वस्त्राभूषण विविधतापूर्ण और चित्ताकर्षक हैं। एलोरा की जैन गुफा संख्या ३० में शिव की नटेश मूर्तियों के समान कुछ नृत्यरत मूर्तियां भी उकेरी हैं। एक उदाहरण दो पुरुष आकृतियों को शिव आकृति के समान एक पैर उठाकर अत्यन्त गतिशील रूप में नृत्यरत दिखाया गया है। ये नृत्य मुख्यतः विभिन्न अप्सराओं (नर्तकी) एवं इन्द्र द्वारा किये गये थे । जैन पुराणों में शिव के स्थान पर इन्द्र द्वारा विभिन्न नृत्यों का किया जाना ध्यातव्य है । कई नृत्य लोकशैली के नृत्य प्रतीत होते हैं ।
खर २२, अंक ४
भरत हुआ है,
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