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अनेक लोग इसे मस्तिष्क की शरीर क्रियात्मक मशीन का एक उत्पाद मानते हैं । वे इसे संवेदन और अनुभूति का आधार मानते हैं। टार्ट के समान प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक चेतना को एक विशेष प्रकार की मनोवैज्ञानिक ऊर्जा मानते हैं जो मन और मस्तिष्क को अपनी क्रियाओं के लिये सक्रिय करती है । यह एक जैविक कम्प्यूटर है जिसकी कार्यक्षमता अनेक दृश्य (अनुभूति, शरीर क्रियाएं, शिक्षा, संस्कृति) और अदृश्य ( कर्म आदि) कारकों पर निर्भर करती है । मस्तिष्क के विशिष्ट केन्द्रों के समान चेतना की भी अनेक विभक्त अवस्थाएं होती हैं जो विशिष्ट गुणों के निरूपक होती हैं। योगी और वैज्ञानिक तथा विद्यार्थी ओर सामान्य जन की चेतना की अवस्थाएं भिन्न-भिन्न होती हैं । हमारे मस्तिष्क की क्रियाएं / दशाएं चेतना की इन अवस्थाओं की प्रतीक हैं । आज के वैज्ञानिक मानते हैं कि सामान्य चेतना द्वि-रूपणी होती है - भौतिक और मानसिक, मूर्त और अमूर्त | इसका मूर्त रूप हमारी सामान्य जीवन क्रियाओं का निरूपक है और मानसिक रूप ज्ञान दर्शन के गुणों का प्रतीक है । यह स्पष्ट है कि ये दोनों रूप अविनाभावी - से लगते हैं। आज की ये वैज्ञानिक मान्यताएं अभी तक तो चेतना या आत्मा की अमूर्तता पुष्ट नहीं कर पाई हैं पर वे इसी दिशा की ओर अभिमुख हो रही हैं, ऐसा लगता है । इस तरह आज का विज्ञान अकलंक के बुद्धिवादी युग की धारणाओं को प्रयोगवाद का स्वरूप देता दिखता है ।
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तुलसी प्रचा
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